छत्रपति शिवाजी महाराज – Chhatrapati Shivaji Maharaj

छत्रपति शिवाजी महाराज - Chhatrapati Shivaji Maharaj

शिवाजी, मराठा साम्राज्य के संस्थापक थे। उन्होंने मराठों के पहले छत्रपति थे जिन्होंने हिंदवी स्वराज्य या “हिंदवी लोगों का स्व-शासन” स्थापित किया।

संवत हिंदू कैलेंडर के अनुसार शिवाजी का जन्म शालिवाहन शक की फाल्गुन कृष्ण पक्ष की तृतीया तिथि, 1551 को शिवनेरी किले (भारत का महाराष्ट्र राज्य) में हुआ था, जबकि ग्रेगोरियन कैलेंडर के अनुसार शिवाजी का जन्म 19 फरवरी, 1630 को हुआ था। छत्रपति शिवाजी महाराज का पूरा नाम शिवाजी भोंसले था। उनके पिता का नाम शाहजी और माता का नाम जीजाबाई था। छत्रपति शिवाजी महाराज एक कुशल शासक होने के साथ ही सैन्य रणनीतिकार और वीर योद्धा थे।

शिवाजी की मृत्यु 3 अप्रैल 1680 को उनके रायगढ़ किले में हुई थी। लेकिन शिवाजी की मृत्यु को लेकर इतिहासकारों के बीच मतभेद की स्थिति बनी हुई है। कुछ इतिहासकारों का मानना है कि उनकी मृत्यु स्वाभाविक थी लेकिन कुछ इतिहासकारों का कहना है कि उन्हें ज़हर दिया गया था, जिसे पीने के बाद उन्हें खून की पेचिस हुई और उन्हें बचाया नहीं जा सका।

शिवाजी को कैसे मिली ‘छत्रपति’ की उपाधि ?

शिवाजी महाराज को छत्रपति की उपाधि मिलने के पीछे एक लम्बी कहानी है। असल में औरंगज़ेब के शासनकाल में शिवाजी के राज्य का विस्तार काफी तेज़ी से हो रहा था। यह विस्तार औरंगज़ेब की आँखों में खटक रहा था क्योंकि औरंगज़ेब की साम्राज्य्वादी नीति के समक्ष यह सबसे बड़ा काँटा था। इस विस्तार की वजह से दक्कन के क्षेत्र में औरंगज़ेब के शासन का प्रभाव दिन प्रतिदिन घटता जा रहा था। इसी वजह से औरंगज़ेब ने शिवाजी को फंसाने के लिए दोस्ती का जाल बिछाया। उसने जयसिंघ और दिलीप खान को पुरंदर संधि पर हस्ताक्षर करने के लिए शिवाजी के पास भेजा। इस संधि के तहत शिवाजी महाराज को औरंगज़ेब को 24 किले देने पड़े।

पुरंदर संधि के बाद सन 1666 में औरंगज़ेब ने शिवाजी महाराज को आगरा स्थित अपने दरबार में बुलाया। यहाँ बुलाकर उन्हें धोखे से कैद कर लिया गया। इसके बाद शिवाजी समझ गए थे कि पुरंदर संधि केवल एक धोखा थी। इसके बाद उन्होंने अपने युद्ध कौशल और सशक्त रणनीति से औरंगज़ेब और उसकी सेना को धूल चटाई और सभी 24 किलों पर फिर से अपना शासन काबिज़ किया। उनकी इस बहादुरी के चलते 6 जून 1674 को उन्हें रायगढ़ किले में छत्रपति की उपाधि से सम्मानित किया गया। उनका राज्याभिषेक काशी के पंडित गागाभट्ट ने कराया था।

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