संजीव कुमार भारतीय फिल्मों के अभिनेता थे। उनका पूरा नाम हरीहर जरीवाला था। मूल रूप से वे गुजराती थे। इस महान कलाकार का नाम फिल्मजगत की आकाशगंगा में एक ऐसे धुव्रतारे की तरह याद किया जाता है जिनके बेमिसाल अभिनय से सुसज्जित फिल्मों की रोशनी से बॉलीवुड हमेशा जगमगाता रहेगा।
नाम | संजीव कुमार |
मूल नाम | हरीभाई जेठालाल जरीवाला |
जन्म तिथि | 9 जुलाई 1938 |
जन्म स्थान | सूरत, गुजरात |
वैवाहिक स्थिति | अविवाहित |
व्यवसाय | अभिनेता |
मृत्यु | 6 नवम्बर 1985 (मुंबई) |
फिल्मों में बतौर अभिनेता काम करने का सपना देखने वाले हरीभाई भारतीय फिल्म उद्योग में आकर संजीव कुमार हो गये। अपने जीवन के शुरूआती दौर में पहले वे रंगमंच से जुड़े परन्तु बाद में उन्होंने फिल्मालय के एक्टिंग स्कूल में दाखिला लिया। इसी दौरान वर्ष 1960 में उन्हें फिल्मालय बैनर की फ़िल्म हम हिन्दुस्तानी में एक छोटी सी भूमिका निभाने का मौका मिला। उसके बाद उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा और एक के बाद एक फिल्मों में अपने शानदार अभिनय से वे एक प्रसिद्ध फिल्म अभिनेता बने।
हरिभाई से संजीव कुमार का सफर – Haribhai’s journey to Sanjeev Kumar
संजीव कुमार ने अपनी फिल्मों की शुरुआत 1960 में हम हिंदुस्तानी में दो मिनट की भूमिका से की। वर्ष 1962 में राजश्री प्रोडक्शन की आरती के लिए उन्होंने स्क्रीन टेस्ट दिया जिसमें वह पास नहीं हो सके। इसके बाद उन्हें कई बी-ग्रेड फिल्में मिली। इन महत्वहीन फिल्मों के बावजूद अपने अभिनय के जरिये उन्होंने सबका ध्यान आकर्षित किया। सर्वप्रथम मुख्य अभिनेता के रूप में संजीव कुमार को वर्ष 1965 में प्रदर्शित फिल्म निशान में काम करने का मौका मिला। फिल्म हम हिन्दुस्तानी के बाद उन्हें जो भी भूमिका मिली वह उसे स्वीकार करते चले गये। इस बीच उन्होंने स्मगलर, पति-पत्नी, हुस्न और इश्क, बादल, जैसी कई फिल्म में अभिनय किया लेकिन इनमें से कोई भी फिल्म बॉक्स ऑफिस पर सफल नहीं हुई। वर्ष 1968 में प्रदर्शित फिल्म शिकार में वह पुलिस ऑफिसर की भूमिका में दिखायी दिये। यह फिल्म पूरी तरह अभिनेता धर्मेन्द्र पर केन्द्रित थी फिर भी संजीव कुमार धर्मेन्द्र जैसे अभिनेता की उपस्थिति में भी अपने अभिनय की छाप छोड़ने में कामयाब रहे। इस फिल्म में उनके दमदार अभिनय के लिये उन्हें सहायक अभिनेता का फिल्मफेयर अवार्ड भी मिला।
आगे बढ़ते रहे और सफलता उनके कदम चूमती रही – Keep moving forward and success kisses your feet
वर्ष 1968 में प्रदर्शित फिल्म संघर्ष में उनके सामने हिन्दी फिल्म जगत के अभिनय सम्राट दिलीप कुमार थे लेकिन संजीव कुमार ने अपनी छोटी-सी भूमिका के बावजूद दर्शकों की वाहवाही लूट ली। इसके बाद आशीर्वाद, राजा और रंक, सत्यकाम और अनोखी रात जैसी फिल्म में मिली कामयाबी से संजीव कुमार दर्शकों के बीच अपने अभिनय की धाक जमाते हुए ऐसी स्थिति में पहुँच गये जहाँ वे फिल्म में अपनी भूमिका स्वयं चुन सकते थे। वर्ष 1970 में प्रदर्शित फिल्म खिलौना की जबर्दस्त कामयाबी के बाद संजीव कुमार ने बतौर अभिनेता अपनी अलग पहचान बना ली। वर्ष 1970 में ही प्रदर्शित फिल्म दस्तक में उनके लाजवाब अभिनय के लिये सर्वश्रेष्ठ अभिनेता के राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
हर तरह के किरदार निभाने में थे माहिर – Was adept in playing all types of characters
वर्ष 1972 में प्रदर्शित फिल्म कोशिश में उनके अभिनय का नया आयाम दर्शकों को देखने को मिला। फिल्म कोशिश में गूँगे की भूमिका निभाना किसी भी अभिनेता के लिये बहुत बड़ी चुनौती थी। बगैर संवाद बोले सिर्फ आँखों और चेहरे के भाव से दर्शकों को सब कुछ बता देना संजीव कुमार की अभिनय प्रतिभा का ऐसा उदाहरण था जिसे शायद ही कोई अभिनेता दोहरा पाये। इन्होंने दिलीप कुमार के साथ संघर्ष में काम किया। फिल्म खिलौना ने इन्हें स्टार का दर्जा दिलाया। इसके बाद इनकी हिट फिल्म सीता और गीता और मनचली प्रदर्शित हुईं। 70 के दशक में उन्होने गुलजार जैसे दिग्दर्शक के साथ काम किया। उन्होंने गुलज़ार के साथ कुल 9 फिल्मे कीं जिनमे आंधी (1975), मौसम (1975), अंगूर (1982), नमकीन (1982) प्रमुख है। इनके कुछ प्रशंसक इन फिल्मों को इनकी सर्वश्रेष्ठ फिल्मों में से मानते हैं।
गब्बर ने जिनसे मांग लिए थे उनके दोनों हाथ – Gabbar had asked for both his hands.
फिल्म शोले, (1975) में उनके द्वारा अभिनीत पात्र ठाकुर बलदेव सिंह (ठाकुर साहब) आज भी लोगों के दिलों में ज़िन्दा है। जिसमे गब्बर उनसे कहता है “ये हाथ हमको दे दे ठाकुर” शोले फिल्म का यह वाक्य आज भी लोग उसी अंदाज में दोहराते हैं। संजीव कुमार के दौर में राजेश खन्ना, अमिताभ बच्चन,धर्मेंद्र, शम्मी कपूर, दिलीप कुमार जैसे अभिनेता छाये हुए थे, फिर भी अपने सशक्त अभिनय से उन सबके बीच काम करते हुए उन्होंने फिल्मजगत में अपना स्थान बनाया।
इन्होनें जिस भी किरदार का अभिनय किया उसे ही जीवंत किरदार बना दिया। 1960 से 1985 तक पूरे पच्चीस साल तक वे लगातार फिल्मों में सक्रिय रहे।
कई बार किया प्रेम लेकिन फिर भी रहे अविवाहित – Loved many times but still remained unmarried
संजीव कुमार ने विवाह नहीं किया परन्तु प्रेम कई बार किया था। उन्हें यह अन्धविश्वास था की इनके परिवार में बडे पुत्र के 10 वर्ष का होने पर पिता की मृत्यु हो जाती है। इनके दादा, पिता और भाई सभी के साथ यह हो चुका था। संजीव कुमार ने अपने दिवंगत भाई के बेटे को गोद लिया और उसके दस वर्ष का होने पर उनकी मृत्यु हो गयी
कम उम्र में किये बड़े किरदार – Big roles played at a young age
बीस वर्ष की आयु में गरीब मध्यम वर्ग के इस युवा ने कभी भी छोटी भूमिकाओं से कोई परहेज नहीं किया। ‘संघर्ष’ फ़िल्म में दिलीप कुमार की बाँहों में दम तोड़ने का दृश्य इतना शानदार किया कि खुद दिलीप कुमार भी सकते में आ गये। स्टार कलाकार हो जाने के बावजूद भी उन्होंने कभी नखरे नहीं किये। उन्होंने जया बच्चन के ससुर, प्रेमी, पिता और पति की भूमिकाएँ भी निभायीं। जब लेखक सलीम खान ने इनसे त्रिशूल में अपने समकालीन अमिताभ बच्चन और शशि कपूर के पिता की भूमिका निभाने का आग्रह किया तो उन्होंने बेझिझक यह भूमिका स्वीकार कर ली और इतने शानदार ढँग से निभायी कि उन्हें ही केन्द्रीय चरित्र मान लिया गया। हरीभाई ने बीस वर्ष की आयु में एक वृद्ध आदमी का ऐसा जीवन्त अभिनय किया था कि उसे देखकर पृथ्वीराज कपूर भी दंग रह गये।
सफलता के कुछ ही दिनों बाद मृत्यु – Death within a few days of success
संजीव कुमार अपनी सफलता का स्वाद ज्यादा दिन नहीं चख सके। अपने पहले दिल के दौरे के बाद, उन्होंने अमेरिका में बाईपास सर्जरी करवाई। हालाँकि, 6 नवंबर 1985 को, 47 वर्ष की आयु में, उन्हें एक बड़ा दिल का दौरा पड़ा, जिसके परिणामस्वरूप उनकी मृत्यु हो गई। उनके छोटे भाई नकुल की मृत्यु उनसे पहले हो गई थी, जबकि उनके दूसरे भाई किशोर की मृत्यु छह महीने बाद हुई थी। संजीव कुमार अभिनीत दस से अधिक फिल्में उनकी मृत्यु के बाद रिलीज हुईं। ‘प्रोफेसर की पड़ोसन(1993)’ उनकी आखिरी फिल्म थी।