त्रिभुवन नारायण सिंह एक राजनीतिज्ञ थे जो 6 माह से भी कम समय के लिए उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे। आमतौर पर देखा जाये तो उपचुनाव के परिणाम सत्ताधारी पार्टी के पक्ष में आता है। जब मुख्यमंत्री खुद उपचुनाव मैदान में हो तो यह उम्मीद और ज्यादा बढ़ जाती है। ठीक इसका उल्टा हुआ 1971 में गोरखपुर के मानीराम विधानसभा उपचुनाव में, जिसने भारतीय राजनीति को एक नई दिशा प्रदान की।
त्रिभुवन नारायण सिंह जीवनी – Tribhuvan Narayan Singh Biography
नाम | त्रिभुवन नारायण सिंह |
जन्म | 8 अगस्त 1904 |
जन्म स्थान | वाराणसी |
पिता | प्रसिद्ध नारायण सिंह |
पेशा | राजनीतिज्ञ |
पद | उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री, प० बंगाल के राज्यपाल |
राजनीतिक दल | भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (संगठन) |
मृत्यु | 3 अगस्त 1982 |
कैसा रहा मुख्यमंत्री बनने तक का सफर – How was your journey till becoming the Chief Minister?
साल 1969 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव जीतने के बाद कांग्रेस के चंद्रभानु गुप्ता प्रदेश के मुख्यमंत्री बने थे। इसके एक साल बाद ही उन्होंने अपना इस्तीफा दे दिया। इसके बाद चौधरी चरण सिंह प्रदेश के मुख्यमंत्री बने। लेकिन वह भी ज्यादा समय तक सत्ता में नहीं रहे और 7 महीने बाद ही बहुमत खो जाने के कारण इस्तीफा देना पड़ा। इस दौरान चरण सिंह ने विधानसभा भंग करने की सिफारिश की लेकिन राज्यपाल बी गोपाला रेड्डी ने विधानसभा भंग करने से इंकार कर दिया।
18 अक्टूबर, 1970 को 17 दिन के राष्ट्रपति शासन के बाद त्रिभुवन नारायण सिंह को मुख्यमंत्री पद की शपथ दिलवाई गई थी। उन्हें भारतीय जनसंघ, स्वतंत्र पार्टी, संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी और कांग्रेस (संगठन) के समर्थन के साथ साथ चरण सिंह का भी समर्थन प्राप्त था। उस समय त्रिभुवन नारायण सिंह राज्य सभा के सांसद थे और उत्तर प्रदेश विधानसभा के किसी भी सदन के सदस्य नहीं थे।
विधान सभा उपचुनावों में मिली थी शिकस्त – Was defeated in assembly by-elections
1971 में जिस मानीराम सीट पर विधानसभा उपचुनाव होने थे उस सीट पर कांटे की टक्कर के बावजूद त्रिभुवन सिंह की हार हुई। त्रिभुवन नारायण सिंह अपनी जीत के प्रति इतने आश्वस्त थे कि उन्होंने एक बार भी मानीराम क्षेत्र का दौरा नहीं किया। उनके चुनाव प्रचार को लेकर हाईकमान ने कर्पूरी ठाकुर जो बिहार के दिग्गज नेता थे को जिम्मेदारी दी गयी थी। इस चुनाव में पहली बार जो देखने को मिला वह अकल्पनीय था। दरअसल भारतीय राजनीती के परिप्रेक्ष्य में देखा जाये तो प्रधानमंत्री कभी भी उपचुनावों में प्रचार के लिए नहीं जाता। लेकिन 1971 के विधानसभा उपचुनावों में प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी कांग्रेस के उम्मीदवार राम कृष्ण द्विवेदी के समर्थन में प्रचार करने मानीराम गई थीं। इस प्रचार का असर साफ साफ चुनावी परिणामों में देखने को मिला। भारत के इतिहास में ये पहला मौका था जब कोई मुख्यमंत्री इस तरह उपचुनाव में पराजित हुआ था। चुनाव परिणाम तब आया जब सदन में राज्यपाल का अभिभाषण चल रहा था। त्रिभुवन नारायण सिंह ने भाषण के बीचोंबीच अपने इस्तीफे की घोषणा करके सबको चौंका दिया था।
राज्यपाल के रूप में त्रिभुवन नारायण सिंह – Tribhuvan Narayan Singh as Governor
त्रिभुवन नारायण सिंह विधान सभा उपचुनावों में हारने के बाद राज्यसभा सदस्य नियुक्त हुए। टी एन सिंह 1970 से 1976 तक राज्यसभा सदस्य रहे। 1977 में जनता पार्टी के सत्ता में आने पर उन्हें पश्चिम बंगाल में ज्योति बसु सरकार में राज्यपाल बनाया गया।
संभाल चुके हैं कई मंत्रालयों की जिम्मेदारी – Have handled the responsibilities of many ministries
- 1952 और 1957 में चंदौली लोकसभा क्षेत्र से संसद सदस्य चुने गए।
- 1957-1958 में लोक लेखा समिति के अध्यक्ष रहे।
- 1964-1967 तक केंद्र सरकार में उद्योग और पूर्ति तथा लौह और इस्पात मंत्री रहे।
- ‘इण्डियन डेली टेलीग्राफ’, ‘हिन्दुस्तान टाइम्स’ और ‘नेशनल हेराल्ड’ जैसे प्रतिष्ठित समाचार पत्रों में अपना योगदान दिया।
व्यक्तित्व से सम्बंधित यह लेख अगर आपको अच्छा लगा हो तो इसे शेयर करना न भूलें और अपने किसी भी तरह के विचारों को साझा करने के लिए कमेंट सेक्शन में कमेंट करें।