भारत ही नही बल्कि दुनिया के तमाम देशों में 1 मई को अंतराष्ट्रीय मज़दूर दिवस के रूप में मनाया जाता है। भारत में श्रमिक दिवस को लेबर डे, मई दिवस, कामगर दिन, इंटरनेशनल वर्कर डे, वर्कर डे के नाम से भी जाना जाता है। यह दिन देश ही नहीं बल्कि दुनिया के मेहनतकश मजदूरों को पूर्ण रूप से समर्पित है। आज का दिन श्रमिक वर्ग के कार्य को सलाम करने का दिन है। राष्ट्रनिर्माण में उनके अमूल्य योगदान पर नतमस्तक होने का दिन है। इसके अलावा यह दिन उन्हे उनके अधिकारों के प्रति जागरुक करने का दिन है। इसलिए आज के दिन कई श्रमिक संगठनों द्वारा रैलियाँ निकाली जाती हैं, सम्मेलनों और सभाओं का आयोजन किया जाता है।
मज़दूर दिवस का महत्व क्या है ?
मजदूर वर्ग की विभिन्न समस्याओं को सुलझाने के लिए भी यह दिन बेहद खास है। इस दिन कई देशों द्वारा मजदूरों के हित में कई तरह की कल्याणकारी योजनाओं की घोषणा भी की जाती है। आज के दिन को हम मूल रूप से श्रमिकों के लंबे संघर्ष के लिए, उचित व समान वेतन, सुरक्षित काम करने की स्थिति, संगठित होने व अपनी आवाज कार्यस्थलों, अदालतों और सरकार द्वारा सुने जाने के अधिकार के लिए याद करते हैं।
मज़दूर दिवस का लघु इतिहास
मज़दूर दिवस की जड़ें 1886 में हुए श्रमिक आंदोलन से जुड़ी है। 1880 के आस पास का समय अमेरिका समेत कई देशों में औद्योगिकरण का दौर हुआ करता था। इस दौर में मजदूरों से 15 घंटे काम करवाया जाता था और उन्हे सप्ताह में एक दिन का अवकाश भी नही दिया जाता है। ऐसे में अमरीका और कनाडा की ट्रेड यूनियनों के संगठन फेडरेशन ऑफ ऑर्गनाइज्ड ट्रेड्स एंड लेबर यूनियन ने तय किया कि मजदूर 1 मई से 8 घंटे से ज्यादा काम नही करेंगे। इसके बाद लाखों की संख्या में मजदूर हड़ताल पर चले गए। हड़ताल में पुलिस की फायरिंग से कई मजदूर घायल भी हुए और कई मजदूरों को अपनी जान गवानी पड़ी।
मज़दूर दिवस मनाने का प्रस्ताव
इस घटना के तीन साल बाद 1889 में अंतराष्ट्रीय सम्मेलन की बैठक हुई। इस बैठक में तय किया गया कि हर मजदूर से 8 घंटे काम लिया जाएगा और सप्ताह में एक दिन का अवकाश दिया जाएगा। ऐसा सबसे पहले अमेरिका में किया गया था। इसके बाद अन्य देशों ने भी इन नियमों को अपनाया। सम्मेलन में 1 मई को मजदूर दिवस मनाने का फैसला भी लिया गया था।
भारत में मज़दूर दिवस
भारत में इस दिन को मनाने की शुरुआत 34 साल बाद हुई थी। भारत में भी मजदूर अपने साथ हो रहे संघर्ष और शोषण के खिलाफ आवाज उठा रहे थे। मजदूरों का नेतृत्व वामपंथियों द्वारा किया जा रहा था। इसके बाद चेन्नई में लेबर किसान पार्टी ऑफ हिंदुस्तान द्वारा 1 मई 1923 में पहली बार मजदूर दिवस मनाया गया। कई संगठनों ने इसका समर्थन किया था।
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