विशेषज्ञों का मानना है कि इस बार मानसून के सीज़न में सामान्य से कम बारिश हो सकती है। इसके पीछे की मुख्य वजह मौसम पर पड़ने वाला अल नीनो इफ़ेक्ट है। इसका प्रभाव इतना अधिक हो सकता है कि देश में 60 प्रतिशत से अधिक सूखा पड़ सकता है। ऐसी संभावना जताई जा रही है कि वर्षा में 30 प्रतिशत तक की कटौती दर्ज की जा सकती है। ऐसी उम्मीद जताई जा रही है कि अप्रेल के महीने में जब दूसरा पूर्वानुमान आएगा तो स्थिति में सुधार हो सकता है।
नेशनल ओशेयनिक एंड एटमोस्फेयरिक एडमिनिस्ट्रेशन (एनओएए) ने पूर्वानुमान जारी किया है। मौसम वैज्ञानिकों के लिए चिंता का विषय ये है कि अल नीनो का प्रभाव जून और जुलाई के महीने में अधिक देखने को मिल सकता है। यह समय मानसून और गर्मी के मौसम को आपस में जोड़ती है। जून से सितम्बर के महीनों के दौरान मानसून सक्रीय रहता है। ऐसे में सूखा पड़ने की संभावना है।
क्या है अल नीनो ?
आइआइटीएम, पुणे के जलवायु परिवर्तन विशेषज्ञ राक्सी मैथ्यू कोल बताते हैं कि ला नीना और अल नीनो दो प्राकृतिक प्रक्रियाएं हैं। ला नीना के दौरान उष्णकटिबंधीय प्रशांत महासागर गर्मी को सोख लेता है। इससे पानी के तापमान में बढ़ोतरी होती है। यही गर्म पानी अल नीनो के प्रभाव के दौरान पश्चिमी प्रशांत महासागर से पूर्वी प्रशांत महासागर तक प्रवाहित होता है। अल नीनो के तीन दौर गुजरने का मतलब है कि पानी का तापमान चरम पर है। वसंत के मौसम में इसके कुछ संकेत मिल सकते हैं।
दो दशक के बाद अल नीनो मानसून को करेगा प्रभावित
2009 से 2019 के बीच चार बार सूखा पड़ा। 2002 में वर्षा की मात्रा में 19 प्रतिशत, जबकि 2009 में 22 प्रतिशत की गिरावट हुई थी। इन दोनों ही वर्षों को गंभीर रूप से सूखे वर्षों में गिना गया। 2004 और 2015 में भी बरसात में 14-15 प्रतिशत की गिरावट आई। ये दोनों साल भी सूखा ग्रस्त रहे। 1997 में अल नीना का प्रभाव देखा गया जिसके बाद बीते 25 सालों में सिर्फ 102 प्रतिशत वर्षा हुई।
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