कच्चातिवु द्वीप (Kachchatheevu Island) – क्यों है चर्चा में?
कच्चातिवु द्वीप, इतिहास की पुस्तकों में छुपा वह अध्याय जिसके कुछ पन्ने आज खुले है। दरअसल, हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का माइक्रोब्लॉगिंग साइट एक्स (पूर्व नाम ‘ट्विटर’) पर किया हुआ एक ट्ववीट काफी वायरल हुआ है। इस ट्वीट ने राजनितिक पारा फिर से बड़ा दिया है। पीएम मोदी ने ट्ववीट करके लिखा “ये चौंकाने वाला है। नए तथ्यों से पता चला है कि कांग्रेस ने जानबूझ कर कच्चातिवु द्वीप श्रीलंका को दे दिया था। इसे लेकर हर भारतीय गुस्सा है और एक बार फिर से मानने पर मजबूर कर दिया है कि हम कांग्रेस पर भरोसा नहीं कर सकते हैं। भारत की अखंडता, एकता कम कर और हितों को कमजोर करना ही कांग्रेस के काम करने का तरीका है। जो 75 सालों से जारी है।”
“ये चौंकाने वाला है। नए तथ्यों से पता चला है कि कांग्रेस ने जानबूझ कर कच्चातिवु द्वीप श्रीलंका को दे दिया था। इसे लेकर हर भारतीय गुस्सा है और एक बार फिर से मानने पर मजबूर कर दिया है कि हम कांग्रेस पर भरोसा नहीं कर सकते हैं। भारत की अखंडता, एकता कम कर और हितों को कमजोर करना ही कांग्रेस के काम करने का तरीका है। जो 75 सालों से जारी है।”
– नरेंद्र मोदी
कहाँ है कच्चातिवु द्वीप?
कच्चातिवु द्वीप, हिंद महासागर के दक्षिणी छोर पर स्थित है। यह द्वीप वस्तुतः श्रीलंका में नेदुनथीवु और भारत में रामेश्वरम के बीच स्थित है। यह एक निर्जन द्वीप है। यह 285 एकड़ के क्षेत्र में फैला है। अपने सबसे चौड़े बिंदु पर इसकी लंबाई 1.6 किमी से ज्यादा नहीं है। भारत के रामेश्वरम से इसकी दूरी 32 किमी है जबकि श्रीलंका के जाफना से यह दूरी लगभग 62 किमी है।
कच्चातिवु द्वीप का इतिहास?
कैसे इस द्वीप पर हुआ श्रीलंका का नियंत्रण? : इस द्वीप का निर्माण 14वीं सदी में ज्वालामुखी विस्फोट से हुआ था। 17वीं सदी में यह द्वीप मदुरई के राजा रामानंद के राज्य का हिस्सा हुआ करता था। अंग्रेजों के शासन के दौरान ये मद्रास प्रेसीडेंसी के पास आ गया। फिर साल 1921 में श्रीलंका ने भी मछली पकड़ने के लिए इस द्वीप पर दावा किया। लेकिन उस वक्त इसे लेकर कुछ खास नहीं हो सका। आजादी के बाद समुद्र की सीमाओं को लेकर कई समझौते हुए।
साल 1974 में भारत की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और श्रीलंका के राष्ट्रपति श्रीमावो भंडारनायके के बीच इस द्वीप पर समझौता हुआ। इस समझौते के तहत कच्चातिवु द्वीप का नियंत्रण श्रीलंका को दे दिया गया लेकिन एक शर्त के साथ। शर्त यह थी कि भारतीय मछुआरे जाल सुखाने के लिए इस द्वीप का इस्तेमाल करेंगे लेकिन भारतीय मछुआरों को इस द्वीप पर मछली पकड़ने की इजाजत नहीं दी गई थी।
तमिल नाडु में हुआ था विरोध
कच्चातिवु द्वीप तमिलनाडु के मछुआरों के लिए सांस्कृतिक रूप से अहम है। इसे श्रीलंका को सौंपने के खिलाफ तमिलनाडु में कई आंदोलन हुए हैं। तमिलनाडु के तत्कालीन मुख्यमंत्री करुणानिधि ने इंदिरा गांधी सरकार के इस फैसले का काफी विरोध किया था। वहीं, जयललिता इस मुद्दे को लेकर सुप्रीम कोर्ट पहुँच गयीं।
क्या है वर्तमान स्थिति?
वर्तमान समय में तमिलनाडु के कई हिस्सों में मछलियां खत्म हो गई हैं। भारतीय मछुआरे मछलियों के लिए अंतरराष्ट्रीय समुद्री सीमा रेखा को पार करते हुए कच्चातिवु द्वीप पहुंचते हैं, जिस कारण कई बार भारतीय मछुआरों को श्रीलंकाई नौसेना गिरफ्तार कर लेती है। एक आरटीआई में इस बात के पुनः खुलने से यह द्वीप चर्चा का विषय बन गया है, जिसे लेकर प्रधानमंत्री मोदी ने ट्वीट किया है।
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