देशवासियों के लिए एक अच्छी खबर है। देश में निर्भरता दर में कमी के दौर की शुरुआत हो चुकी है। ऐसी संभावना जताई जा रही है कि वर्ष 2036 तक यह घटकर 54 फीसदी रह जाएगी। इसका सीधा सा मतलब यह है कि 100 कमाने वाले लोगों पर कुल 54 बुज़ुर्ग और बच्चे ही निर्भर रहेंगे। पिछले एक दशक में इसमें काफी तेज़ी से गिरावट दर्ज की गई है। 2011 में यह दर 65 फीसदी थी। सांख्यिकी एवं कार्यक्रम क्रियान्वयन मंत्रालय द्वारा जारी की गई रिपोर्ट ‘भारत में स्त्री पुरुष 2022’ में इस बात का उल्लेख किया गया है। इसमें कहा गया है कि देश की कार्यशील आबादी में लगातार बढ़ोतरी का दौर जारी है। इसकी वजह से देश को सामाजिक और आर्थिक लाभ होने की संभावना अधिक बढ़ जाती है। देश में बुज़ुर्गों की आबादी बढ़ने के बावजूद निर्भरता दर घट रही है, जो देश के विकास के लिए काफी अच्छी बात है।
वर्ष निर्भरता दर 100 कामकाजियों पर
- 2011 में 64.9 फीसदी 50.8 बच्चे 13.8 बुजुर्ग
- 2021 में 55.7 फीसदी 40 बच्चे 15.7 बुजुर्ग
- 2036 में (अनुमान) 54 फीसदी 31 बच्चे 23 बुजुर्ग
कैसे कम हो रही है निर्भरता दर ?
2011 में 15 से 59 आयु वर्ग के लोगों की संख्या 73.5 करोड़ थी, यानी कुल आबादी का 60.7 फीसदी हिस्सा। अनुमान लगाया जा रहा है कि 2036 में यह संख्या 98.85 करोड़ हो जाएगी यानी कुल आबादी का 64.9 फीसदी हिस्सा। 2011 में 14 साल से कम आयुवर्ग के लोगों की संख्या 30.9 फीसदी थी और 60 वर्ष से अधिक लोगों की आबादी 8.4 फीसदी थी। यह अनुमान लगाया जा रहा है कि 2036 में 14 वर्ष से कम आयु वर्ग की आबादी घट कर 21.1 फीसदी रह जाएगी, जबकि बुज़ुर्गों की आबादी 14.9 फीसदी होगी। इस दौरान कामकाजी वर्ग में 5 फीसदी की बढ़ोतरी हो सकती है।
क्या होते हैं निर्भता दर कम होने के मायने ?
निर्भरता दर जितनी कम होती है अर्थव्यवस्था उतनी अधिक मज़बूत होती है। इसके अलावा सामाजिक योजनाओं पर होने वाले सरकारी खर्च में कमी आती है। परिवार पर निर्भरता कम होने से संसाधनों का इस्तेमाल बेहतर तरीके से हो पाता है। संयुक्त राष्ट्र अमेरिका में 15 से 64 वर्ष मानी जाती है जबकि भारत में यह आयु 15 से 59 वर्ष मानी जाती है।
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