SC on Demonitisation
8 नवंबर 2016 को मोदी सरकार (Modi Government) ने पूरे देश में नोटबंदी लागू की थी जिसके चलते 500 और 1000 रुपय के नोटों को चलन से बाहर कर दिया गया था। फैसले के बाद पूरे देश को इन नोटों को बदलवाने के लिए लंबी कतारों में खड़ा होना पड़ा। सरकार की तरफ से अचानक से की गई इस नोट बंदी के खिलाफ 58 याचिकाएं दर्ज की गई थी। इन सभी याचिकाओं पर आज यानी 2 जनवरी 2023 को सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला आया है। जिसमें कोर्ट ने सरकार के इस फैसले पर मुहर लगाते हुए इसे सही ठहराया है। इस पर जस्टिस अब्दुल नजीर की अध्यक्षता वाली 5 जजों की संवैधानिक बेंच ने कहा कि आर्थिक फैसलों को बदला नहीं जा सकता।
जस्टिस बीवी नागरत्न ने आरबीआई को भारतीय अर्थव्यवस्था की दीवार बताया
उन्होंने अपने साथी जजों से सहमति जताने के साथ ही अपने तर्कों को भी पेश किया। उन्होंने कहा “मैंने सभी 6 सवालों के जवाब दिए हैं। मैंने आरबीआई के महत्व और उसके अधिनियम और देश की आर्थिक नीतियों का उल्लेख किया। आगे उन्होंने कहा, भारतीय रिजर्व बैंक भारतीय अर्थव्यवस्था की दीवार है। मैंने दुनिया भर में इस तरह की विमुद्रीकरण कवायद के इतिहास का हवाला दिया है। उन्होंने कहा कि हमें आर्थिक या वित्तीय निर्णय के गुण दोष नहीं निकालने हैं।”
SC – दुरुस्त थी नोट बंदी की प्रक्रिया
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि देश में नोटबंदी लागू होने से पहले इस पर केंद्र सरकार (Central Government) और आरबीआई के बीच सलाह मशवरा हुआ था। इसलिए सुप्रीम कोर्ट ने माना है कि ये फैसला लेते समय इस प्रक्रिया में किसी भी तरह की कोई कमी नहीं थी। इस इस अधिसूचना को रद्द करने की कोई आवश्यकता नहीं है।
कोर्ट में 9 मुद्दों को उठाया गया
जस्टिस गवई ने बताया है कि 58 याचिकों में 9 मुद्दों को कोर्ट में उठाया गया था जिनमें से 6 मुद्दों पर सुप्रीम कोर्ट ने विशेष ध्यान दिया है।
आरबीआई (RBI) ने दिए ये तर्क
केंद्र से सिफारिश करने के लिए आरबीआई अधिनियम के तहत प्रक्रिया का पालन किया गया। आरबीआई की केंद्रीय बोर्ड की बैठक में निर्धारित कोरम पूरा किया गया था, जिसमें सिफारिश करने का फैसला किया गया था। लोगों को कई मौके देने के साथ ही पैसों को बदलने के लिए बड़े स्तर पर व्यवस्था भी की गई थी।
केंद्र ने कोर्ट में रखी ये दलीलें
केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट में याचिकाओं का जवाब देते हुए कहा है कि जाली नोटों, बेहिसाब धन और आतंकवाद जैसी गतिविधियों पर रोक लगाने के लिए नोट बंदी जैसा बड़ा फैसला लिया गया था। केंद्र ने ये भी कहा कि इस फैसले को अन्य आर्थिक फैसलों से अलग करके देखना और इसकी जांच करना उचित नहीं है। नोटबंदी की वजह से ही सिस्टम से नकली करंसी को बाहर करने में काफी मदद मिली है। इसके अलावा इससे डिजिटल अर्थव्यवस्था (Digital Economy) को लाभ भी हुआ है।
58 याचिकाओं में इन तर्कों का दिया गया था हवाला
याचिकाकर्ताओं ने इस बात का दावा किया था की इस प्रक्रिया को अपनाने में सरकार ने कई खामियों को नजरंदाज किया है। इस फैसले ने देश में कानून के शासन का मज़ाक बनाया है। केवल आरबीआई के केंद्रीय बोर्ड (Central Board of RBI) की सिफारिश पर ही सरकार नोटबंदी कर सकती है। लेकिन यहां प्रक्रिया को ही पलट दिया गया। केंद्र ने फैसला लेने के दौरान अहम दस्तावेजों को रोक दिया, जिसमें सरकार द्वारा आरबीआई को 7 नवंबर को लिखा गया पत्र और आरबीआई बोर्ड की बैठक के मिनट्स शामिल हैं।
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