मैथिलीशरण गुप्त : जन्मदिन विशेष 3 अगस्त

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राष्ट्रकवि ‘मैथिलीशरण गुप्त’ हिन्दी के प्रसिद्ध कवि थे। उनकी कृति भारत-भारती (1912) भारत के स्वतन्त्रता संग्राम के समय में काफी प्रभावशाली सिद्ध हुई थी। इसी कारण से महात्मा गांधी ने उन्हें ‘राष्ट्रकवि’ की पदवी भी दी थी। आज 3 अगस्त, उनकी जयंती पर इस लेख के माध्यम से जानतें हैं उनके बारे में कुछ बातें।

संक्षिप्त जीवन परिचय – Biography of Maithili Sharan Gupt

वास्तविक नाम (Real Name)मैथिलीशरण गुप्त
पेशा (Profession )कवि, लेखक
जन्म (Date of Birth)3 अगुस्त 1886
निधन 12 दिसंबर 1964
जन्मस्थान (Birth Place) झांसी ( चिरगांव )
प्रमुख रचनाएं भारत भारती, साकेत, यशोधरा, द्वापर,
जयभारत, विष्णुप्रिया
परिवार ( Family )पिता ( Father ) – सेठ रामनारायण गुप्त
माता (Mother ) –
काशी बाई
धर्म (Religion)हिन्दू
  • 3 अगस्त, 1886 को मैथिलीशरण गुप्त का जन्म झाँसी, उत्तर प्रदेश में हुआ था। वे पिता ‘सेठ रामचरण गुप्त’ और माता ‘काशी बाई’ की तीसरी संतान के रूप में जन्मे थे।
  • उनकी आरम्भिक शिक्षा चिरगाँव, झाँसी के राजकीय विद्यालय में हुई। प्रारंभिक शिक्षा समाप्त करने के उपरान्त मैथिलिशरण गुप्त झाँसी के ही मेकडॉनल हाईस्कूल में अंग्रेज़ी पढ़ने के लिए भेजे गए, पर वहाँ इनका खेल-कूद में अघिक मन लगने लगा, जिस कारण ये अपनी आधिकारिक शिक्षा पूर्ण नहीं कर पाए।
  • बाकी की शिक्षा-दीक्षा इनकी घर से ही संपन्न हुई। घर पर रहकर गुप्त ने संस्कृत, हिन्दी तथा बांग्ला साहित्य का व्यापक अध्ययन किया। 
  • गुप्तजी आधुनिक काल के सर्वाधिक लोकप्रिय कवियों में से एक थे। इन्होने 40 मौलिक रचनाओं का सृजन किया। साथ ही, मैथिलीशरण गुप्त की 6 अनूदित (अनुवाद) पुस्तकें भी प्रकाशित हुई।
  • 1947 में भारत को आज़ादी मिलने के बाद उन्हें राज्य सभा का सदस्य मनोनीत किया गया। 1964 में अपनी मृत्यु तक वे राज्य सभा के सदस्य रहे। 12 दिसंबर, 1964 को मैथिलीशरण गुप्त का देहावसान हो गया।
  • वर्ष 1954 में उन्हें ‘पद्म भूषण’ सम्मान से अलंकृत किया गया।

गुप्त जी की साहित्यिक उपलब्धियाँ 

हिंदी साहित्य में मैथिलिशरण गुप्त का महत्वपूर्ण स्थान है। हिंदी साहित्यिक जगत में वे ‘दद्दा’ के नाम से विख्यात है। वे ‘द्विवेदी युग’ के समय के साहित्यिक विमर्श के सिद्ध हस्ताक्षर थे। वे ‘खड़ी बोली’ में लिखा करते थे। हिंदी साहित्य में खड़ी बोली को साहित्यिक आधार देने में गुप्त जी का महत्वपूर्ण योगदान है। कई कालजयी रचनाओं का सृजन करके मैथिलिशरण गुप्त ने हिंदी साहित्य की विपुल सम्पदा को और संपन्न बनाया है।

कविता के माध्यम से राष्ट्र-प्रेम की अभिव्यक्ति

मैथिलीशरण गुप्त की रचनाएँ राष्ट्र प्रेम से ओत-प्रोत है। उनकी कविताओं में देशभक्ति की भावना झलकती है। उन्होंने न केवल राष्ट्र के अतीत का गौरव का गान किया है अपितु यथार्थ को भी अपनी रचनाओं में पिरोया है। इसी परिप्रेक्ष्य में ‘भारत भारती’ एक अनुपम कृति है। इस रचना ने स्वतंत्रता संग्राम के समय अनेकों को प्रेरित करने का कार्य किया। इसी रचना के कारण गांधीजी ने गुप्त जी को राष्ट्रकवि की पदवी से सम्मानित किया था।

भारत भारती : यह रचना 1912-13 में लिखी गयी थी। यह काव्य भारतवर्ष के पुरातन वैभव का न केवल गान करती है अपितु तत्कालीन समय की यथार्थ का चित्रण भी करती है। इसके अतिरिक्त, यह आने वाले भविष्य के गर्भ में भारत के परम वैभव के प्राप्ति के उपायों को अवलोकित करने का कार्य भी करती है।  

भू-लोक का गौरव प्रकृति का पुण्य लीला-स्थल कहाँ ?

फैला मनोहर गिरी हिमालय और गंगाजल जहाँ । 

सम्पूर्ण देशों से अधिक किस देश का उत्कर्ष है,

उसका कि जो ऋषिभूमि है, वह कौन ? भारत वर्ष है॥

हाँ, वृद्ध भारतवर्ष ही संसार का सिरमौर है,

ऐसा पुरातन देश कोई विश्व में क्या और है ?

भगवान की भव-भूतियों का यह प्रथम भण्डार है,

विधि ने किया नर-सृष्टि का पहले यहीं विस्तार है॥

यह पुण्य भूमि प्रसिद्ध है, इसके निवासी ‘आर्य्य’ हैं;

विद्या, कला-कौशल्य सबके, जो प्रथम आचार्य्य हैं ।

संतान उनकी आज यद्यपि, हम अधोगति में पड़े;

पर चिन्ह उनकी उच्चता के, आज भी कुछ हैं खड़े॥

भारत भारती (मैथिलीशरण गुप्त)

किसान : इसी प्रकार ‘किसान’ कविता में उन्होंने देश के किसानों की दयनीय स्थिति पर प्रकाश है |

“हो जाये अच्छी भी फसल,

पर लाभ कृषकों को कहाँ,

खाते, खवाई, बीज ऋण से हैं रंगे रक्खे जहाँ।

आता महाजन के यहाँ वह अन्न सारा अंत में,

अधपेट खाकर फिर उन्हें है कांपना हेमंत में।” 

“घनघोर वर्षा हो रही, है गगन गर्जन कर रहा,

घर से निकलने को गरज कर, वज्र कर रहा।

तो भी कृषक मैदान में करते निरंतर काम है,

किस लोभ से वे आज भी, लेते नहीं विश्राम है।

“तो भी कृषक ईंधन जलाकर खेत पर है जागते,

यह लाभ कैसा है, न जिसका मोह अब भी त्यागते।”

किसान (मैथिलीशरण गुप्त)

स्त्री विमर्श : एक मार्मिक किन्तु यथार्थ चित्रण

“अबला जीवन हाय तेरी यही कहानी |
आंचल में है दूध और आँखों में पानी ||”

हिंदी साहित्यिक जगत में गुप्त जी ने स्त्री विमर्श लेखनी में कई नए प्रयोग किये।  मैथिलीशरण गुप्त जी का नारी को लेकर एक अलग दृष्टिकोण था जिसकी झलक उनके लेख द्वारा हमें देखने को मिलती है। उन्होंने अपनी अनेकों कविताओं में भारतीय नारियों को विशेष रूप से स्थान दिया है और उनके चरित्र के त्याग व वंचना को निरूपित करने का प्रयास किया है।इनमें यशोधरा, उर्मिला व कैकयी जैसी उपेक्षित नारियों को भी अपने काव्य में स्थान दिया और उनको अलग प्रकार से चित्रित किया है।

अधिकारों के दुरूपयोग,

कौन कहाँ अधिकारी।

कुछ भी स्वत्व नहीं रखती क्या, अर्धांगिनी तुम्हारी।।

गुप्त जी की नारी तन से भले ही अबला व सुकुमारी है किन्तु वे खल पात्रों के सम्मुख उनका सबल पक्ष सामने आता है। जैसे सीता हरण करने पर रावण पर गुप्त जी व्यंग करते हुए कहतें है –

“जीत न सका एक अबला का मन, तू विश्वजयी कैसा?

जिन्हें तुच्छा कहता है, उनसे भागा क्यों तस्कर ऐसा?”

उपसंहार 

मैथिलिशरण गुप्त ने हिंदी साहित्य जगत में एक अलग किन्तु उत्कृष्ट छाप छोड़ी है। गुप्तजी युगीन चेतना और उसके विकसित होते हुए स्वरूप को गढ़ने में माहिर थे। तत्कालीन समय के राष्ट्र की आत्मा को वाणी देने के कारण वे राष्ट्रकवि कहलाए। वे आधुनिक हिन्दी काव्य धारा के प्रतिनिधि कवि के रूप मे स्वीकार किए गए । उन्होंने अपने चरित्र चित्रण करने के क्रम में मानवीय स्वरुप को चुना न कि अलौकिकता या पारलौकिकता को। उनकी भावाव्यक्ति गंभीर है। अपनी इन्हीं विशेषताओं के कारण उनकी काव्य पंक्तियाँ आम परिवेश में भी लोकोक्ति की भांति प्रयोग में लायी जाती है। आज, 3 अगस्त, उनकी जयंती पर हम ultranews की ओर से उन्हें श्रद्धा सुमन अर्पित करते हैं।

साहित्यिक कृतियाँ

प्रमुख रचनाएँ प्रकाशन वर्ष 
रंग में भंग 1909 ई.
जयद्रथवध 1910 ई.
भारत भारती 1912 ई.
किसान 1917 ई.
शकुन्तला 1923 ई.
पंचवटी 1925 ई.
अनघ 1925 ई.
हिन्दू 1927 ई.
त्रिपथगा 1928 ई.
शक्ति 1928 ई.
गुरुकुल 1929 ई.
विकट भट 1929 ई.
साकेत 1931 ई.
यशोधरा 1933 ई.
द्वापर 1936 ई.
सिद्धराज 1936 ई.
नहुष 1940 ई.
कुणालगीत 1942 ई.
काबा और कर्बला 1942 ई.
पृथ्वीपुत्र 1950 ई.
प्रदक्षिणा 1950 ई.
जयभारत 1952 ई.
विष्णुप्रिया 1957 ई.
अर्जन और विसर्जन 1942 ई.
झंकार 1929 ई
स्रोत : संसद टीवी

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