एक व्यक्ति जीवन रहने के लिए औसतन 8,000 लीटर वायु 

एक व्यक्ति जीवन रहने के लिए औसतन 8,000 लीटर वायु 

एक व्यक्ति जीवन रहने के लिए औसतन 8,000 लीटर वायु अंदर एवं बाहर करता है।ऐसे में मौजूद प्रदूषक तत्व सांस के जरिए शरीर में पहुंच जाते हैं, जिससे कई तरह के गंभीर रोग होते हैं। सांस संबंधी रोग के, हृदय रोग के अलावा प्रजनन क्षमता पर असर डालता है और जन्म दोष,नर्वस सिस्टम को भी नुकसान पहुंचाता है। सांस के साथ हवा में मौजूद धूल कण रक्त प्लाज्मा में नहीं घूमतीरहती है। बड़े कणतो नासिका द्वारा परही रुक जाते हैं, लेकिन सूक्ष्म कण फेफड़ों तक पहुंच जाते हैं। वहां से वे शरीर के दूसरे हिस्सों में जाकर रोग पैदा करते हैं।षदूषित वायु से सांस संबंधी बीमारियां जैसे – गले का दर्द, निमोनिया, फेफड़ों का कैंसर,आदि हो सकती हैं ।

हमें ईंधन पर अपनी निर्भर कमकर नवीकरणीय ऊर्जा पर निर्भरता बढ़ती होगी।सौर, पवन और हाईड्रो थर्मल ऊर्जा से हमारी नवीकरणीय ऊर्जा का एक बड़ा कोष तैयार हो सकता है। प्रदूषण और कोविड-19 के बीच संबंधों पर हल के शोध ने पर्यावरण की गुणवत्ता पर वायु प्रदूषकों के नकारात्मक प्रभाव के बारे में चिंताओं को बढ़ा दिया है । सख्त नीतियां बनानी होंगी और प्रदूषण बढ़ाने वाले उद्योगों के खिलाफ सख्त कानून लागू कर ना होगा और प्रदूषण को कम करने केलिए दीर्घ कलिक समाधानों पर अमल करना होगा। 

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