इस विधि से करें लक्ष्मी – गणेश की पूजा, बरसेगा धन, कई गुना होगी फल की प्राप्ति

इस विधि से करें लक्ष्मी - गणेश की पूजा, बरसेगा धन, कई गुना होगी फल की प्राप्ति
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कार्तिक के पावन महीने का विशेष त्यौहार है दिवाली। सुख-समृद्धि, धन-धान्य आदि की प्राप्ति करने के लिए दिवाली के पावन पर्व पर लक्ष्मी-गणेश की आराधना विशेष रूप से की जाती है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन माँ लक्ष्मी और गणेश जी की आराधना करने पर जीवन भर धन की कमी नहीं होती।
वैसे तो हिन्दू धर्म में तमाम महीनों का अपना खास महत्त्व है। लेकिन धार्मिक मान्यताओं के अनुसार कार्तिक माह को विशेष महत्व प्राप्त है। कहते है इस माह पूजा-पाठ करने से कई गुना अधिक फल की प्राप्ति होती है। बता दें कि यह माह विशेष रूप से माँ लक्ष्मी और विष्णु भगवान को समर्पित है। हर साल इस माह की अमावस्या तिथि को दिवाली का त्यौहार मनाया जाता है।
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार यदि इस दिन माँ लक्ष्मी और गणेश जी की पूजा सही मुहूर्त में और सही विधि से की जाए तो कई गुना अधिक फल की प्राप्ति होती है। जो व्यक्ति इस दिन पूरे विधि विधान से पूजा करता है उस दिन उसे अपने पूरे जीवन में धन की कमी नहीं होती।
दिवाली पूजन की यह है खास विधि
दिवाली पर मिटटी के दिए को जलाना शुभ माना जाता है। दिवाली के दिन पूजा के समय 12,21,31,51,71 या 101 की संख्या में दीप जलाना बेहद शुभ माना जाता है।
एक चौकी पर लाल रंग का कपड़ा बिछाएं। लाल रंग का प्रयोग करना और दिवाली पर लाल रंग के वस्त्र धारण करना बेहद शुभ माना जाता है। चौकी पर इस वस्त्र को बिछाने के बाद इस पर माँ लक्ष्मी और गणेश जी की मूर्ती को स्थापित करें। ऐसा करने के बाद लक्ष्मी गणेश को पंचामृत स्नान कराएं।
स्नान कराने के पश्चात सुपारी, सोलह पैसों के सिक्के, रोली, अक्षत, फूल और जल से षोडशपोचार करें। इसके पश्चात भगवान गणेश और माँ लक्ष्मी को पाँच तरह के फल, इलायची, सुपारी, पंचमेवा और बर्फी समर्पित करें।
मूर्ती स्थापन के साथ ही दक्षिणावर्ती शंख, श्री यंत्र, धनिया के बीज, पीली कौड़ी, हल्दी की गांठ, मोती शंख, हत्था जोड़ी, श्री यंत्र, गोमती चक्र स्थापित करें।
पान के पाँच या छह पत्ते, रूई, अशोक या आम के पत्ते के साथ कलश स्थापित करें। कमल का फूल, खील बताशे से माँ की पूजा कीजिए।
दिवाली के दिन घी और सरसो के तेल का प्रयोग कर रूई से बाती बनाएं और अखण्ड जोत जलाएं।
फिर चावल में हल्दी बनाकर अष्टदल बना लीजिए। इसके बाद इस अष्टदल कमल पर दीपक स्थापित करें और वहीं कलश की स्थापना करें। कलश की स्थापना कर अखण्ड दीपक का तिलक करें।

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