चो रामास्वामी – Cho Ramaswamy

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चो रामास्वामी (Cho Ramaswamy), जिनका पूरा नाम श्रीनिवास अय्यर रामास्वामी था, भारतीय पत्रकारिता, साहित्य, राजनीति और नाटक जगत के एक प्रमुख व्यक्तित्व थे। उनका जन्म 5 अक्टूबर 1934 को तमिलनाडु में हुआ। उन्होंने अपने हास्य, व्यंग्य और बेबाक तर्कसंगत सोच से लोगों के दिलो में अपनी जगह बनाई। इसके साथ ही उन्हें पद्मा भूषण पुरुस्कार से सम्मानित किया गया।

 साहित्य और पत्रकारिता में योगदान

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चो रामास्वामी के लेखन का मुख्य माध्यम उनका पत्रिका ‘तुगलक’ था। 1970 में शुरू हुई इस पत्रिका ने तमिल पत्रकारिता को नई दिशा दी। इसमें उन्होंने तीखे व्यंग्य, गहन विश्लेषण और स्पष्ट दृष्टिकोण के माध्यम से राजनीति और समाज के महत्वपूर्ण पहलुओं को उजागर किया। उनका लेखन निडर और निष्पक्ष था, जो उन्हें अन्य पत्रकारों से अलग बनाता था।

चो रामास्वामी बायोग्राफी – Cho Ramaswamy Biography in Hindi

जन्म 5 अक्टूबर 1934
जन्म स्थान तमिलनाडु
व्यवसाय अभिनेता, राजनीतिक व्यंग्यकार, पत्रकार, वकील, संपादक निर्देशक, स्क्रीन लेखक
पत्नीसाउंडराम्बा रामास्वामी
बच्चे2
पुरस्कारपद्मा भूषण
निधन 7 दिसंबर 2016

नाटक और सिनेमा का सफर

Cho Ramaswamy चो रामास्वामी - Cho Ramaswamy

चो एक निपुण नाटककार और अभिनेता भी थे। उनकी नाटकों में हास्य, व्यंग्य और सामाजिक संदेश का अद्भुत संगम देखने को मिलता था। तमिल सिनेमा में उन्होंने कई यादगार भूमिकाएं निभाईं, जहां उनकी हास्य शैली ने लोगों को खूब गुदगुदाया। उनके नाटकों और फिल्मों में उनके बौद्धिक दृष्टिकोण और समाज सुधारक की छवि झलकती थी।

राजनीति और विचारधारा

चो रामास्वामी भारतीय राजनीति के एक सजग विश्लेषक थे। वे किसी भी राजनीतिक दल के प्रति पक्षपाती नहीं थे और हमेशा निष्पक्ष राय देते थे। उन्होंने आपातकाल के समय सरकार की आलोचना की और लोकतंत्र की रक्षा में अपनी भूमिका निभाई। उनके विचारों में भारतीय संस्कृति और परंपराओं के प्रति गहरी आस्था थी, लेकिन वे आधुनिकता और प्रगतिशीलता को भी समान महत्व देते थे।

प्रेरणा और विरासत

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चो रामास्वामी एक ऐसा नाम है जो पत्रकारिता, साहित्य और राजनीति में विचारों की स्वतंत्रता और सत्य की खोज का प्रतीक है। उन्होंने अपने हास्य और व्यंग्य के माध्यम से सामाजिक बदलाव की दिशा में महत्वपूर्ण योगदान दिया।
7 दिसंबर 2016 को उनका निधन हो गया, लेकिन उनकी विचारधारा और कार्य आज भी हमें प्रेरणा देते हैं।

“सत्य बोलने के लिए साहस चाहिए और चो रामास्वामी उस साहस के प्रतीक थे।”

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