इब्न बतूता – Ibn Battuta

इब्न बतूता - Ibn Battuta

इब्न बतूता कौन हैं? भारत के प्रख्यात गीतकार, और फिल्म निर्देशक गुलज़ार साहब भी अपने गीत में वाक्य लिखते हैं, ‘इब्न बातूता बगल में जूता’, एक फिल्म इश्किया में भी इस्तेमाल किया है।

इब्न बतूता जीवनी – Ibn Battuta Biography

जन्म 24 फरवरी 1304
उल्लेखनीय कार्यरिहला
पेशाभूगोलवेत्ता, खोजकर्ता, विद्वान
मृत्यु1369

दरअसल इब्न बतूता मोरक्को के एक अरब यात्री, विद्धान् तथा लेखक थे, जिनका जन्म 24 फ़रवरी 1304 में हुआ, फिल्म इश्किया के गाने में भी इस नाम का अर्थ घुममकड़ी या यात्रा से ही संबंधित है, जिसे आप फिल्म देख कर समझ जाएंगे।

इब्न बतूता पूरा नाम था मुहम्मद बिन अब्दुल्ला इब्न बत्तूता। इब्न बतूता मुसलमान यात्रियों में सबसे महान था। अनुमानत: इन्होंने लगभग ७५,००० मील की यात्रा की थी। इतना लंबा भ्रमण उस युग के शायद ही किसी अन्य यात्री ने किया होगा। अपनी यात्रा के दौरान भारत भी आया था। उनकी पुस्तक का नाम रिहला (क़िताब-उर-रिहला) था। इब्न बतूूूता द्वारा अरबी भाषा में लिखा गया यात्रा वृतांत (रिहला) में चौहदवीं शताब्दी में भारतीय उपमहाद्वीप के सामाजिक और सांस्कृतिक जीवन के विषय में बहुत ही प्रचुर और रोचक जानकारी दी गई है।

इब्न बत्तूता आरंभ से ही बड़ा धर्मानुरागी था। उसे मक्के की यात्रा (हज) तथा प्रसिद्ध मुसलमानों का दर्शन करने की बड़ी अभिलाषा थी। इस आकांक्षा को पूरा करने के उद्देश्य से वह केवल 22 बरस की आयु में यात्रा करने निकल पड़ा। मक्के आदि तीर्थस्थानों की यात्रा करना प्रत्येक मुसलमान का एक आवश्यक कत्र्तव्य है। इसी से सैकड़ों मुसलमान विभिन्न देशों से मक्का आते रहते थे। इन यात्रियों की लंबी यात्राओं को सुलभ बनाने में कई संस्थाएँ उस समय मुस्लिम जगत् में उत्पन्न हो गई थीं जिनके द्वारा इन सबको हर प्रकार की सुविधाएँ प्राप्त होती थीं और उनका पर्यटन बड़ा रोचक तथा आनंददायक बन जाता था।

इब्न बत्तूता दमिश्क और फिलिस्तीन होता एक कारवाँ के साथ मक्का पहुँचा। यात्रा के दिनों में दो साधुओं से उसकी भेंट हुई थी जिन्होंने उससे पूर्वी देशों की यात्रा के सुख सौंदर्य का वर्णन किया था। इसी समय उसने उन देशों की यात्रा का संकल्प कर लिया।

भारत प्रवेश

भारत के उत्तर पश्चिम द्वार से प्रवेश करके वह सीधा दिल्ली पहुँचा, जहाँ तुगलक सुल्तान मुहम्मद ने उसका बड़ा आदर सत्कार किया और उसे राजधानी का काज़ी नियुक्त किया। इस पद पर पूरे सात बरस रहकर, जिसमें उसे सुल्तान को अत्यंत निकट से देखने का अवसर मिला, इब्न बत्तूता ने हर घटना को बड़े ध्यान से देखा सुना। १३४२ में मुहम्मद तुगलक ने उसे चीन के बादशाह के पास अपना राजदूत बनाकर भेजा, परंतु दिल्ली से प्रस्थान करने के थोड़े दिन बाद ही वह बड़ी विपत्ति में पड़ गया और बड़ी कठिनाई से अपनी जान बचाकर अनेक आपत्तियाँ सहता वह कालीकट पहुँचा।

वापस मोरक्को

इब्न बतूता मुसलमान यात्रियों में सबसे महान था। अनुमानत: उसने लगभग ७५,००० मील की यात्रा की थी। इतना लंबा भ्रमण उस युग के शायद ही किसी अन्य यात्री ने किया होगा। “फेज” लौटकर उसने अपना भ्रमणवृत्तांत सुल्तान को सुनाया। सुल्तान के आदेशानुसार उसके सचिव मुहम्मद इब्न जुज़ैय ने उसे लेखबद्ध किया। इब्न बतूता का बाकी जीवन अपने देश में ही बीता।

 इब्न बत्तूता के भ्रमणवृत्तांत को “तुहफ़तअल नज्ज़ार फ़ी गरायब अल अमसार व अजायब अल अफ़सार” का नाम दिया गया। इसकी एक प्रति पेरिस के राष्ट्रीय पुस्तकालय में सुरक्षित हैं। उसके यात्रावृत्तांत में तत्कालीन भारतीय इतिहास की अत्यंत उपयोगी सामग्री मिलती है।

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