जीजाबाई महान मराठा राजा और योद्धा शिवाजी की माँ थीं। वे प्रतिद्वंद्वी मुगल साम्राज्य के विरुद्ध मजबूती से खड़ी थीं। जीजाबाई ने शिवाजी को महान महाकाव्यों और लोककथाओं की कहानियां सुनाकर रणनीति, मूल्यों और धर्म का महत्व सिखाया। उन्होंने शिवाजी को राजनीति की कला सिखाई और एक न्यायप्रिय और सत्यनिष्ठ शासक बनने के लिए तैयार किया। आज 17 जून उनकी पुण्यतिथि पर जानतें हैं माता जीजाबाई के बारे में –
जन्म
जीजाबाई का जन्म 1594 में महाराष्ट्र के ‘सिंधखेड’ शहर में हुआ था।
उनके पिता लखुजी जाधव थे जो निजाम शाही सुल्तान के दरबार में एक जागीरदार थे। लखुजी उसके राज्य के एक छोटे हिस्से को संभाला करते थे। उनकी माता का नाम महालसाबाई जाधव था।
विवाह पश्चात् बनीं जीजाबाई
तत्कालीन रीति-रिवाजों के अनुसार उनका विवाह छोटी उम्र में ही शाहजी भोंसले के साथ कर दिया गया था। विवाह के बाद उनका उपनाम अब जाधव न रहकर भोंसले बन गया था। जिसके बाद से उन्हें जीजाबाई भोंसले के नाम से जाना गया।
छत्रपति शिवाजी की माता के रूप में
किसी भी व्यक्ति के जीवन में माँ के सच्चे महत्व का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि जहाँ एक ओर वह प्रथम गुरु होतीं हैं, वहीं दूसरी ओर माँ के चरणों में स्वर्ग कहा गया है। ऐसी ही एक माँ और वीर महिला थीं जीजाबाई जो न केवल छत्रपति शिवाजी की मित्र, मार्गदर्शक थीं बल्कि प्रेरणा की एक महान स्रोत भी थीं। कठिनाइयों और विपत्तियों के मामले में उसने कभी हिम्मत और धैर्य नहीं खोया। उन्होंने अपने बेटे को नैतिक मूल्य और आदर्श दिए। इन्हीं संस्कारों व नैतिक मूल्यों के बल पर शिवाजी आगे चलकर छत्रपति शिवजी महाराज हुए, जिन्होंने हिंदवी स्वराज की स्थापना की।
अंतिम क्षण
‘राजमाता’ के रूप में जानी जाने वाली, जीजाबाई की मृत्यु शिवाजी के राज्याभिषेक के कुछ दिनों बाद, पचड़ गाँव में, किले रायगढ़ के तल पर हुई। आज, रायगढ़ के क्षेत्र को पवित्र माना जाता है, और बालक शिवाजी के साथ माता जीजा की कई मूर्तियाँ, भारतीय इतिहास के दो महान प्रेरक व्यक्तित्वों के बीच मातृ बंधन की याद दिलाती हैं।
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