लक्ष्मी बाई के आदर्श थे मंगल पांडेय

लक्ष्मी बाई के आदर्श मंगल पांडेय की पुण्यतिथि आज
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आज हम स्वतंत्र भारत में सांस ले पा रहे हैं तो इसका सम्पूर्ण श्रेय भारत के स्वतंत्रता सेनानियों को जाता है जिन्होंने अपनी जान की बाज़ी लगा कर पराधीनता की ज़ंजीरों में जकड़े भारत को आज़ाद कराया। बलिदान की इस धरती पर अनेक वीर योद्धाओं ने जन्म लिया। इन योद्धाओं में एक नाम अमर शहीद मंगल पांडेय का भी है। उनकी पुण्यतिथि पर उन्हें नमन करते हुए उनकी वीरता और पराक्रम के बारे में जानने की कोशिश करते हैं।

कौन थे मंगल पांडेय ?

मंगल पांडेय का जन्म 18 जुलाई 1827 को उत्तर प्रदेश के गाजीपुर जिले के नगमा ग्राम में हुआ था। मंगल पांडेय देश के वीर स्वतंत्रता सेनानी थे। 1857 में भारत के प्रथम स्वाधीनता संग्राम में इनकी भूमिका बेहद एहम थी। मात्र 22 वर्ष की उम्र में 10 मई 1949 को वह ईस्ट इंडिया कंपनी में सिपाही के तौर पर भर्ती हुए थे। इस दौरान उनकी तैनाती 34 इन्फेंट्री रेजिमेंट बैरकपुर में की गई थी।

आज़ादी के लिए चलाई पहली गोली

वैसे तो 10 मई से 1857 की क्रान्ति की आधिकारिक शुरुआत हुई थी लेकिन 29 मार्च के दिन मंगल पांडेय ने भारत की आज़ादी के लिए पहली गोली चलाई थी। मंगल पांडेय की फांसी से अँगरेज़ इतना खौफ खाते थे कि उनकी फांसी की तारीख से 10 दिन पहले ही उन्हें अंग्रेज़ों द्वारा फांसी दे दी गई थी। उन्हें पश्चिम बंगाल के बैरकपुर में फांसी की सज़ा 8 अप्रैल 1857 को सुनाई गई थी।

क्यों हुई थी मंगल पांडेय को फांसी ?

ईस्ट इंडिया कंपनी के आने के बाद से भारतीय नागरिक उनके राज और रियासत से तो परेशान थे ही साथ ही इशाई मिस्त्रियों की ओर से धर्मांतरण किए जाने से भी काफी परेशान थे। लेकिन जब कंपनी की सेना की बंगाल इकाई में राइफल में नई कारतूसों का इस्तेमाल किया जाने लगा तो मामला पहले से भी ज़्यादा बिगड़ गया।

इन कारतूसों को बन्दूक में डालने से पहले मुहँ से खोलना पड़ता था। लेकिन उस समय भारतीय सैनिकों के बीच यह खबर आग की तरह फ़ैल गई कि कारतूस बनाने में गाय और सूअर की चर्बी का इस्तेमाल किया गया है। 9 फरवरी 1857 को जब देशी पैदल सेना को नया कारतूस बाँटा गया तो मंगल पांडेय ने इसे लेने से साफ़ इंकार कर दिया। ऐसा करने के बाद अंग्रेज़ी अधिकारी ने उनका कोर्ट मार्शल कर देने का आदेश जारी कर दिया।

मंगल पांडेय ने इस आदेश को स्वीकार करने से साफ़ इंकार कर दिया। 29 मार्च 1857 को उनकी राइफल छीनने के लिए आगे बड़े अंग्रेज़ी अफसर मेजर ह्यूसन पर उन्होंने धावा बोल दिया। इस प्रकार नए कारतूसों का इस्तेमाल करना ईस्ट इंडिया कंपनी के लिए काफी नुकसानदायक साबित हुआ और उन्होंने अंग्रेज़ों के खिलाफ विद्रोह का बिगुल फूंक दिया। इस विद्रोह की शुरुआत में ही मंगल पांडेय ने दो अंग्रेज़ी अधिकारी मेजर ह्यूसन और लेफ्टिनेंट बॉब को मौत के घात उतार दिया।

इस पर इनके खिलाफ कोर्ट मार्शल का मुकदमा चलाकर 6 अप्रैल 1857 को फांसी की सज़ा सुनाई गई। सज़ा के अनुसार उन्हें 18 अप्रैल 1857 को फांसी दी जानी थी लेकिन अंग्रेज़ी सरकार ने उन्हें 10 दिन पहले ही फांसी की सज़ा मुकर्रर कर दी।

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