मेजर धन सिंह थापा भारतीय सेना के एक वीर और साहसी सैनिक थे, जिन्होंने 1962 के भारत-चीन युद्ध के दौरान अद्वितीय बहादुरी और नेतृत्व का परिचय दिया। उनकी वीरता के लिए उन्हें भारत के सर्वोच्च सैन्य सम्मान परम वीर चक्र से सम्मानित किया गया।
धन सिंह थापा जीवन परिचय – Dhan Singh Thapa Biography
जन्म | 10 अप्रैल 1928 शिमला, हिमाचल प्रदेश |
देहांत | 5 सितम्बर 2005 |
निष्ठा | भारत |
सेवा/शाखा | भारतीय सेना |
सेवा वर्ष | 1949–1975 |
उपाधि | मेजर, बाद में लेफ्टिनेंट कर्नल |
सेवा संख्यांक | IC-7990 |
दस्ता | पहली व 8वीं गोरख राइफल |
युद्ध/झड़पें | भारत-चीन युद्ध |
सम्मान | परमवीर चक्र |
प्रारंभिक जीवन
धन सिंह थापा का जन्म 10 अप्रैल 1928 को शिलांग, मेघालय में हुआ था। वे गोरखा समुदाय से ताल्लुक रखते थे, जो अपनी वीरता और निष्ठा के लिए प्रसिद्ध है। उन्होंने छोटी उम्र से ही सेना में जाने का सपना देखा और भारतीय सेना में भर्ती होकर इस सपने को साकार किया।
सैन्य सेवा
मेजर थापा 1/8 गोरखा राइफल्स में नियुक्त थे। वे एक अनुशासित, साहसी और प्रेरणादायक अधिकारी के रूप में जाने जाते थे। 1962 में जब भारत और चीन के बीच युद्ध छिड़ा, तब वे लद्दाख के सिरिजाप क्षेत्र में तैनात थे, जो strategically अत्यंत महत्वपूर्ण था।
1962 का युद्ध और वीरता
20 अक्टूबर 1962 को, चीन की सेना ने सिरिजाप पोस्ट पर अचानक हमला कर दिया। मेजर थापा की टुकड़ी मात्र कुछ दर्जन सैनिकों की थी, जबकि सामने हजारों चीनी सैनिक थे। लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी। उन्होंने दुश्मन के कई हमलों को नाकाम किया और अंत तक डटे रहे। जब उनके अधिकांश साथी शहीद हो गए और पोस्ट घिर गई, तब भी मेजर थापा ने अंतिम क्षण तक लड़ाई लड़ी। अंत में वे घायल होकर कैदी बना लिए गए, लेकिन उनका साहस और नेतृत्व सभी को प्रेरणा दे गया।
सम्मान और विरासत
उनकी इस अद्वितीय वीरता के लिए उन्हें परम वीर चक्र से सम्मानित किया गया। युद्ध के बाद उन्हें रिहा किया गया और वे सेना में सेवा करते रहे। 2005 में उनका निधन हुआ, लेकिन उनका नाम हमेशा भारतीय वीरों की सूची में अमर रहेगा।
मेजर धन सिंह थापा का जीवन हमें यह सिखाता है कि मातृभूमि की रक्षा के लिए कोई भी बलिदान छोटा नहीं होता। उनका साहस, समर्पण और नेतृत्व आने वाली पीढ़ियों को सदैव प्रेरित करता रहेगा।
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