रानी दुर्गावती – Rani Durgavati

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रानी दुर्गावती, जिन्हें गोंडवाना की रानी दुर्गावती के नाम से भी जाना जाता है, एक प्रसिद्ध भारतीय रानी थीं जिन्होंने 16वीं शताब्दी के दौरान मध्य भारत में गोंडवाना साम्राज्य पर शासन किया था। उन्हें मुख्य रूप से मुगल साम्राज्य के विरुद्ध गोंडवाना की रक्षा करने के लिए याद किया जाता है।

रानी दुर्गावती का जन्म 5 अक्टूबर 1524 ई. को प्रसिद्ध चंदेल सम्राट कीरत राय के परिवार में हुआ था। उनका जन्म कालिंजर(बांदा, उ.प्र.) के किले में हुआ था। दुर्गाष्टमी पर जन्म के कारण उनका नाम दुर्गावती रखा गया। नाम के अनुरूप ही तेज, साहस, शौर्य और सुन्दरता के कारण इनकी प्रसिद्धि सब ओर फैल गयी। भारतीय इतिहास की सर्वाधिक प्रसिद्ध रानियों में गिनी जाती हैं। भारतीय इतिहास में चंदेल राजवंश अपने वीर राजा विद्याधर के लिए प्रसिद्ध है जिन्होंने महमूद गजनवी के आक्रमणों को विफल कर दिया था।

1542 में उनका विवाह गोंड राजवंश के राजा संग्राम शाह के सबसे बड़े पुत्र दलपत शाह से हुआ। इस विवाह के परिणामस्वरूप चंदेल और गोंड राजवंश करीब आ गए और यही कारण था कि शेरशाह सूरी के आक्रमण के समय कीरत राय को गोंडों और उनके दामाद दलपतशाह की मदद मिली जिसमें शेरशाह सूरी की मृत्यु हो गई।

1545 ई. में उन्होंने एक पुत्र को जन्म दिया जिसका नाम वीर नारायण रखा गया। दलपतशाह की मृत्यु लगभग 1550 ई. में हुई। चूंकि वीर नारायण उस समय बहुत छोटे थे, इसलिए रानी दुर्गावती ने गोंड साम्राज्य की बागडोर अपने हाथों में ले ली।

रानी दुर्गावती को मुख्य रूप से बाहरी आक्रमणों, विशेष रूप से मुग़ल बादशाह अकबर के कमांडर आसफ खान के नेतृत्व वाली सेना के खिलाफ अपने राज्य की रक्षा करने में उनकी वीरता और दृढ़ संकल्प के लिए याद किया जाता है। वह विदेशी शासन और उत्पीड़न के खिलाफ प्रतिरोध का प्रतीक बन गईं।

सन् 1564 में, रानी दुर्गावती को एक बड़े मुगल हमले का सामना करना पड़ा, जिसका उन्होंने बहादुरी से मुकाबला किया। तभी एक तीर उनकी भुजा में लगा, रानी ने उसे निकाल फेंका। दूसरे तीर ने उनकी आंख को बेध दिया, रानी ने इसे भी निकाला। पर उसकी नोक आंख में ही रह गयी। तभी तीसरा तीर उनकी गर्दन में आकर धंस गया। रानी ने अंत समय निकट जानकर सेनापति आधारसिंह से आग्रह किया कि वह अपनी तलवार से उनकी गर्दन काट दे, पर वह इसके लिए तैयार नहीं हुआ। अतः रानी अपनी कटार स्वयं ही अपने सीने में भोंककर आत्म बलिदान के पथ पर बढ़ गयीं।

विकट स्थिति को महसूस करते हुए, उन्होंने मुगलों द्वारा पकड़े जाने के बजाय अपना जीवन समाप्त करने का विकल्प चुना। और 24 जून, 1564 को युद्धक्षेत्र में ही अपने प्राण दे दिए।

अपने लोगों और अपने राज्य की रक्षा के लिए उनके बलिदान और प्रतिबद्धता ने उन्हें भारतीय इतिहास में एक महान व्यक्तित्व के रूप में स्थापित किया। रानी दुर्गावती की विरासत लोगों को प्रेरित करती रहती है और उनकी कहानी पूरे इतिहास में भारतीय महिलाओं की अदम्य भावना और साहस का प्रमाण है। 

नामरानी दुर्गावती
जन्म5 अक्टूबर 1524
मृत्यु24 जून 1564
जन्म स्थानकालिंजर दुर्ग
जीवनसंगीदलपत शाह

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