हमारे देश मे अपनी मांगों को लेकर आंदोलन करने की पूरी स्वतंत्रता है। इसी स्वतंत्रता के कारण कुछ लोग अपना वो उद्देश्य भी पूरा कर लेते है जो देश व समाज के लिए हितकर नही होता। ऐसा ही एक अदृश्य उद्देश्य लेकर तथाकथित किसान, किसान हित का नाम लेकर हरियाणा, दिल्ली व पंजाब के बॉर्डर पर एकत्रित हो गए है। उनकी तैयारी को देखकर लग रहा है कि आंदोलन की योजना लंबे समय से चल रही थी और इस आंदोलन को उग्र व हिंसक बनाने की भी है।
ट्रैक्टरों के आगे मजबूत जाल, छोटी जेसीबी, ट्रैक्टरों में लाठी, डंडे, पत्थर, रस्सी, राशन सामग्री यहाँ तक कि चाकू तलवार भी दिखाई दे रही है। किसानों के हित की मांग करने वाले ये तथाकथित किसान वास्तव में किस योजना से सीमाओं पर आए हैं, सोचनीय बिंदु है।
पिछली बार भी इन किसानों ने हिंसक आंदोलन किया था, जो काफी लंबे समय तक चला था। आंदोलन समाप्ति के बाद जानकारी मिली थी कि इसके लिए खालिस्तान समर्थक व बड़े बड़े आढ़तियों ने इन आंदोलनकारियों को फंडिंग की थी, इसमे कई विपक्ष के बड़े नेता भी शामिल थे। किसान हित की बात करके भोलेभाले किसानों को तथा देश को भ्रमित करने वाले इन नकली किसानों की सच्चाई सबको समझनी चाहिए और ध्यान करना चाहिए कि आखिर ये लोग क्या उद्देश्य लेकर जनता को परेशान करने सड़को पर आ गए हैं।
इनका उद्देश्य पहले की भांति इस बार भी स्पष्ट है। किसान हित की आड़ में खालिस्तान की आवाज मजबूत करना और धन का लालच। कांग्रेस वाले विपक्ष को सत्ता दिलाना भी इनका उद्देश्य है क्योंकि कांग्रेस के सत्ता के आते ही इनकी सारी देशविरोध की इच्छा स्वयं पूर्ण हो जाएगी। न्यूनतम समर्थन मूल्य यानि एमएसपी की मांग करने वाले इन मांगों से लोगों को जानबूझकर सबको भ्रमित कर रहे हैं। वर्तमान मोदी सरकार के कार्यकाल को देखेंगे तो स्पष्ट है कि कितना एमएसपी बढ़ा है।
जानकारी के अनुसार 2014 से 2024 तक एमएसपी 40 से 60 प्रतिशत बढ़ चुका है। मोदी कार्यकाल के शुरुआत में गेंहू की एमसपी 1400 थी, धान की 1360, मक्का की 1310,अरहर की 4350, मूंग 4600 चना दाल, सरसो की 3000 के आसपास थी और अभी वर्तमान में गेंहू की एमएसपी 2275 है, धान की 2183 है, मक्का की 2090 है, अरहर की 7000 है, मूंग की 8558 है, अन्य दालों की लगभग 6500 है। इतनी वृद्धि के बाद में एमएसपी-एमएसपी चिल्लाकर सड़को पर हथियारो के साथ आना किस ओर इंगित करता है समझ जाएं। इन सबके बाद में सरकार बात करने को तैयार है। बात करने को ये नकली किसान तैयार ही नही है।
किसी आंदोलन से पहले जिसके खिलाफ आंदोलन करना होता है उसके सामने अपनी मांग रखी जाती है। अगर वो आपकी बात को नही सुनता है तब आंदोलन करने की योजना बनाई जाती है। यहाँ पहले आंदोलन हो रहा है। अपनी मांग बाद में बताई जा रही है। सरकार बात करने को लगातार कह रही है पर बात करने को तैयार ही नही है कोई भी। उनको पता है कि अगर सरकार के पास बात करने गए तो सरकार किसान हित की सारी बात मान लेगी और ऐसा हुआ तो आंदोलन का मुख्य उद्देश्य पूरा नही होगा।
देश की जनता को और भारत के असली अन्नदाताओं को इन आंदोलनकारियों के असली देशविरोधी उद्देश्य को समझकर इस आंदोलन का विरोध करना चाहिए, नही तो देश के सामान्य जन में जो सम्मानजनक छवि किसानों की है उसमें कमी आएगी क्योंकि राज्य बॉर्डर पर खड़े होकर देश के सामान्यजन का रास्ता रोकने वाले के प्रति समाज सम्मान नही रखेगा।
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पिछले दो-तीन दिनों से इन नकली किसानों के कारण कई एम्बुलेंस भीड़ में फंसी है, जिसके कारण दो-तीन जान भी चली गई है। अपनी गाड़ी को रोकर एम्बुलेंस के लिए रास्ता देने वाले देश मे एम्बुलेंस कई घण्टे तक मरीज को लेकर खड़ी है। कितनी चिंतनीय बात है। आम आदमी नौकरी, व्यापार में, कर्मचारी ऑफिस में, बच्चे स्कूल में, मरीज अस्पताल में, यात्री घरों में नही पहुँच पा रहे हैं। ये कैसा समाजिक आंदोलन है? देश की सरकार व जनता को इस योजनात्मक रूप से शुरू हो रहे आंदोलन के पीछे कौन लोग है समझना पड़ेगा और समझना पड़ेगा कि इन नकली किसानों को उद्देश्य क्या है।
लेखक : ललित शंकर गाजियाबाद
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