अमरकंटक पहुंचे डिजिटल बाबा
युवाओं के बीच डिजिटल बाबा का क्रेज़ बढ़ता जा रहा है। इसके पीछे सोशल मीडिया की एहम भूमिका है। डिजिटल बाबा उर्फ़ राम शंकर आज के डिजिटल प्लेटफार्म का सहारा लेकर युवाओं को भारतीय संस्कारों और परम्पराओं की जानकारी देने के साथ ही उन्हें नर्मदा नदी की यात्रा करने के लिए भी प्रेरित कर रहे हैं। इसके लिए वह फेसबुक, यूट्यूब और ट्विटर जैसे सोशल मीडिया प्लेटफार्म का उपयोग सुचारू रूप से कर रहे हैं। हाथ में सेल्फी स्टिक लिए और कोलर माइक लगाए डिजिटल बाबा नर्मदा नदी की यात्रा के दौरान कई बार युवाओं और अन्य आयु वर्ग के लोगों से कनेक्ट हो चुके हैं। यह सिलसिला अभी भी जारी है। सोशल मीडिया के माध्यम से ही वह जन सामान्य को पावन नर्मदा नदी की यात्रा कराने के साथ ही वहाँ रहने वाले स्थानीय लोगों की समस्याओं से भी परिचित कराने की कोशिश कर रहे हैं।
आपको बता दें कि डिजिटल बाबा ने 4 नवंबर 2022 को देवउठनी एकादशी पर गोमुख घाट पर विधिवत पूजा पाठ, कन्या भोज के उपरान्त ओंकारेश्वर से नर्मदा परिक्रमा शुरू की। नर्मदा यात्रा के 89 वे दिन बाबा नर्मदा नदी के उद्गम स्थान अमरकंटक पहुँच गए थे। इसके बाद उन्होंने 2 दिन कल्याण दास सेवा आश्रम में विश्राम किया। इस दिन उनके फॉलोवर्स आश्रम में उनसे मिलने आए और उन्होंने बाबा से सत्संग पर बातचीत की। यात्रा के 91 वे दिन ‘माई की बगिया’ होते हुए तट परिवर्तित कर दक्षिण तट से ओंकारेश्वर की ओर प्रस्थान कर गए।
नर्मदा नदी के जल की पवित्रता को लेकर उन्होंने आम जन मानस को यह सन्देश दिया है कि जब तक हम व्यक्तिगत रूप से नदी के जल के जल को साफ़ रखने पर ध्यान नहीं देंगे तब तक नर्मदा का जल प्रदूषित होता रहेगा। सरकार केवल नदी के जल को साफ़ करवाने का दावा करती है लेकिन जब तक हम अपनी ज़िम्मेदारी नहीं समझेंगे तब तक नदी का जल स्वच्छ नहीं हो सकता।
डिजिटल बाबा पूरे परिक्रमा को फेसबुक लाइव कर आम जनमानस को डिजिटली परिक्रमा का दर्शन लाभ प्रदान करा रहे हैं। नर्मदा मैया के जल को स्वच्छ रखने के विषय मे डिजिटल बाबा ने कहा कि जब तक हम व्यक्तिगत ढंग से जागरूक नही होगे तब तक माँ नर्मदा का जल प्रदूषित होता रहेगा। सरकार में बैठे नेता लोग केवल वादा करते रहेंगे धरातल पर उन वादों को उतारने में कोई भी सरकार तब तक सफल नही हो सकती जब तक की नागरिक अपनी जिम्मेदारी का निर्वाह ठीक ढंग से नही करेंगे।
डिजिटल बाबा ने यात्रा के दौरान देशाटन के महत्त्व को भी रेखांकित किया है। उनका कहना है कि किताबें दुनियाभर के बारे में बहुत कुछ बताती हैं लेकिन देशाटन से प्राप्त हुआ ज्ञान किसी भी अन्य साधन से प्राप्त नहीं हो सकता। उनका कहना है कि परिक्रमा की बेहद सुखद बात जातिगत ऊँच नींच की दीवार का गिर जाना है। इसपर उन्होंने मानव को जीवंत मूर्त होते हुए देखने के लिए परिक्रमा करने के महत्त्व को भी प्रतिपादित किया है।
3600 किलोमीटर की इस नर्मदा यात्रा में डिजिटल बाबा अकेले होते हुए भी अकेले नहीं है क्योंकि वह जहाँ भी रुकते हैं वहाँ लोगों को आध्यात्म से जोड़ते हैं और आगे बढ़ जाते हैं। यात्रा में आगे बढ़ने पर यह सिलसिला आगे भी जारी रहता है। यह युवा सन्यासी हर रोज़ 25 से 30 किलोमीटर परिक्रमा कर रहे हैं। उन्होंने बताया है कि वह अपनी परिक्रमा को समय सीमा में नहीं बांधते।
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