7 जुलाई को धूमधाम से निकाली जाएगी भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा। जानें क्या है इतिहास Lord Jagannath’s Rath Yatra will be taken out with great pomp on 7th July. Know what is history
हर साल आषाढ़ माह में शुक्ल पक्ष की द्वितीय तिथि को भगवान जगन्नाथ रथयात्रा का आयोजन किया जाता है। इस वर्ष 7 जुलाई को भगवान जगन्नाथ रथयात्रा का आयोजन होना है। जिसके भव्य आयोजन की तैयारी अंतिम चरण में है। रथयात्रा का क्या है इतिहास? क्यों निकाली जाती है रथयात्रा?
Live : Jagannath Rath Yatra 2024
स्कंद पुराण के अनुसार द्वापर युग से पहले सिर्फ भगवान विष्णु की रथ यात्रा होती थी। उन्हें नीलमाधव नाम से पूजा जाता था। द्वापर युग के बाद श्रीकृष्ण, बलभद्र और सुभद्रा के रथ रथयात्रा में शामिल हुए। पुराणों के मुताबिक ये धार्मिक परंपरा सतयुग से चली आ रही है। वहीं, इतिहासकार और लेखकों के मुताबिक रथयात्रा 8वीं शताब्दी में शुरू हुई।
धर्म ग्रंथों के अनुसार, “तीन पुराणों ‘पद्म पुराण’, ‘स्कन्द पुराण’, तथा ‘विष्णु पुराण’ में रथ यात्रा का जिक्र मिलता है।
क्या है पौराणिक कहानी – What is the mythological story
सतयुग में एक राजा इंद्रद्युम्न हुए जिनकी पत्नी का नाम था गुंडिचा। दोनों ही भगवान विष्णु के अनन्य भक्त थे। राजा जहाँ यज्ञ किया करते थे उसके पास ही एक नीम का पेड था। भगवान विष्णु एक दिन रानी गुंडिचा के स्वप्न में आये और नीम के तने को जगन्नाथ रूप मानकर पूजने के लिए कहा। राजा और रानी ने यज्ञ करने वाली जगह पर ही पेड़ के तने से तीन मूर्तियां बनाई जो भगवान जगन्नाथ, उनके भाई बलभद्र तथा उनकी बहन सुभद्रा के नाम से कालांतर में प्रसिद्ध हुईं। भगवान रानी के स्वप्न में फिर से आये और उन्हें उन मूर्तियों को मंदिर में स्थापित करने के लिए कहा और बोले कि मैं हर साल सात दिनों के लिए तुम्हारे महल में आऊंगा। राजा और रानी ने मंदिर का निर्माण कराया और उन मूर्तियों को महल से मंदिर तक ले जाने के लिए रथयात्रा का आयोजन किया गया।
क्या है इतिहासकारों और लेखकों का मत – What is the opinion of historians and writers
- 1859 में ओडिशा के कवि भिखारी पटनायक की किताब ‘रथ चकदा’ के अनुसार, “8वीं और 9वीं शताब्दी में राजा ययाति केशरी, पुरी में रथ यात्रा मनाते थे। तब 3 रथों की जगह 6 रथ होते थे। उस समय रास्ते में नदी पार करने के लिए रथों को बदला जाता था।
- ओडिशा के इतिहासकार डॉ नीलकंठ मिश्रा ने लिखा है कि वैष्णव विद्वान् माध्वाचार्य सन 1270 ई0 में पुरी गए थे। तब माध्वाचार्य ने 6 रथों वाली परम्परा को गलत बताया था। इसके बाद फिर से 3 रथों की परम्परा शुरू हुई।
- मंदिर में रखे ऐतिहासिक ग्रन्थ मदला पंजी के अनुसार, “16वीं शताब्दी में राजा वीर नरसिंह देव ने ग्रैंड रोड पर बहने वाली नदी को रेत से भर दिया। उन्होंने मुख्य मंदिर से गुंडिचा मंदिर तक तीनों रथों के आने जाने का इंतजाम किया।
क्या है रथ बनाने की प्रक्रिया – What is the process of making chariot
- रथयात्रा के लिए लकडियां ओडिशा के मयूरभंज, गंजाम तथा क्योंझर के जंगलों से लायी जाती हैं। इसके लिए वन विभाग के अधिकारी मंदिर को सूचना देतें हैं।
- पुजारी लकड़ी लेने जंगल जाते हैं और पेड़ों की पूजा करतें हैं। उसके बाद सोने की कुल्हाड़ी से पेड़ों में कट लगाये जाते हैं।
- फिर पेड़ काटे जातें हैं और पेड़ो के गिरने पर भी उनकी पूजा की जाती है। हर साल बसंत पंचमी के दिन लकड़ियां पुरी पहुँचती हैं।
- रामनवमी के दिन से लकडी काटने का काम शुरू किया जाता है। पहली लकडी सोने की कुल्हाडी से काटी जाती है।
- जगन्नाथ मंदिर के पास गजपति महल के सामने रथ बनाने का कार्य किया जाता है।
रथ बनाने के कार्य में कौन कौन से समुदाय लेते हैं हिस्सा – Which communities take part in the work of making chariots
जगन्नाथ रथ यात्रा के रथ बनाने का किस्सा भी बडा दिलचस्प है। जिसमे ओडिशा के ही सात समुदाय हिस्सा लेते हैं। ये समुदाय पीढ़ी दर पीढ़ी इसी तरह रथ बनाने का कार्य करते हैं।
- महाराणा(विश्वकर्मा) समुदाय इस समुदाय में दो तरह के समुदाय होते हैं
सुतारी महाराणा – ये लोग रथ के नाप का ध्यान रखते हैं।
तली महाराणा – ये लोग रथ के हिस्सों को जोडते हैं।
- भोई सेवक – इस समुदाय के लोग लकडियों को रथ बनाने वाली जगह पर पहुंचाते हैं।
- करतिया – इस समुदाय के लोग लकडियों को चीरने का काम करते हैं।
- लौहार – ये लोग रथ के पहियों में लगने वाले लोहे और पीतल का काम करते हैं।
- रूपकार – इस समुदाय के लोग तीनो रथों पर कलाकृतियां बनाने का काम करते हैं।
- दर्जी – ये लोग रथों में लगने वाले कपडे का काम करते हैं।
- चित्रकार – इस समुदाय के लोग सभी रथों में रंग भरने का काम करते हैं।
कितना होता है रथों का आकार – What is the size of the chariots
तीनों रथों में सबसे ऊँचा रथ भगवान जगन्नाथ का होता है। जो 45 फीट 6 इंच ऊँचा तथा क्षेत्रफल 34 फीट 6 इंच होता है। इनके बाद बलभद्र का रथ थोड़ा कम ऊँचा होता है। जिसकी ऊंचाई 45 फीट तथा क्षेत्रफल 33 फीट होता है। सुभद्रा के रथ की ऊंचाई 44 फीट 6 इंच तथा क्षेत्रफल 31 फीट 6 इंच होता है।
महत्वपूर्ण जानकारी – Important information
- रथ बनाने के लिए ऐसे लोगो को शामिल किया जाता है जिनकी पूर्वज कई पीढ़ियों से इस काम को कर रहे हैं।
- इस काम में उन्हीं लोगों को शामिल किया जाता है जिन्हें मंदिर के प्रमुख सेवक चुनते हैं।
- इसके लिए एक परीक्षा का आयोजन किया जाता है जिसे पास करने वाले लोग ही रथ बनाने के कार्य में शामिल होते हैं।
सम्पूर्ण भारत में वर्षभर में होने वाले प्रमुख पर्वों की ही तरह पुरी की रथयात्रा का पर्व भी महत्त्वपूर्ण है। पुरी का प्रधान पर्व होते हुए भी यह रथयात्रा पर्व पूरे भारतवर्ष में लगभग सभी नगरों में श्रद्धा और उल्लास के साथ मनाया जाता है। जो लोग पुरी की रथयात्रा में नहीं सम्मिलित हो पाते वे अपने नगर की रथयात्रा में अवश्य शामिल होते हैं। परंतु मतानुसार तीर्थ दर्शन फल पुरी में ही सम्भव है। उत्साहपूर्वक श्री जगन्नाथ जी का रथ खींचकर लोग अपने आपको धन्य समझते हैं।
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