सुभाष चंद्र बोस (“नेताजी” के नाम से प्रसिद्ध) एक प्रमुख भारतीय राष्ट्रवादी नेता और स्वतंत्रता सेनानी थे जिन्होंने ब्रिटिश शासन के खिलाफ भारत के स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। आज 18 अगस्त उनके पुण्यतिथि पर इस लेख के माध्यम से जानतें हैं उनके बारे में कुछ बातें।
“तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हे आज़ादी दूंगा”
सुभाष चंद्र बोस
आरम्भिक जीवन व शिक्षा-दीक्षा
सुभाष चंद्र बोस माता प्रभावती बोस व पिता जानकीनाथ बोस के घर 23 जनवरी, 1897 को कटक (आज का ओडिशा) में जन्मे थे। सुभाष अपने माता-पिता के नौवीं संतान थे। जानकीनाथ बोस, एक सरकारी वकील थे।
सुभाष चंद्र बोस ने कलकत्ता (कोलकाता) के प्रेसीडेंसी कॉलेज और स्कॉटिश चर्च कॉलेज में पढ़ाई की। बोस ने भारतीय व पाश्चात्य, दोनों दर्शनों का अध्ययन किया। एक ओर जहाँ वे रामकृष्ण परमहंस और स्वामी विवेकानंद से प्रभावित थे, वहीं दूसरी ओर उन्होंने कांट और हीगल जैसे दार्शनिकों का भी अध्ययन किया।
वर्ष 1916 में बोस को प्रेसीडेंसी कॉलेज से राष्ट्रवादी गतिविधियों के लिए निष्कासित कर दिया गया था। उसके बाद उनके माता-पिता ने उन्हें भारतीय सिविल सेवा की तैयारी के लिए इंग्लैंड के कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में भेज दिया। 1920 में उन्होंने सिविल सेवा परीक्षा उत्तीर्ण की। उस समय आईसीएस में छह रिक्तियां थीं। अगस्त, 1920 में सुभाष बोस ने इस परीक्षा में चौथे स्थान पर रहे। हालाँकि, अप्रैल, 1921 में, भारत में राष्ट्रवादी उथल-पुथल के बारे में सुनने के बाद, उन्होंने अपनी उम्मीदवारी से इस्तीफा दे दिया और भारत वापस आ गये।
“दिल्ली की सड़क स्वतंत्रता की सड़क है, दिल्ली चलो”
सुभाष चंद्र बोस
सुभाष चंद्र बोस : आज़ादी की लड़ाई में / Subhash Chandra Bose : In the struggle for freedom
24 साल की उम्र में सुभाष बोस 16 जुलाई, 1921 की सुबह बंबई में भारत पहुंचे। बोस गांधीजी द्वारा शुरू किए गए असहयोग आंदोलन में शामिल हो गए। उनके मेंटर चित्तरंजन दास थे जो बंगाल में राष्ट्रवाद के एक प्रखर समर्थक थे।
उन्होंने ‘स्वराज’ अखबार शुरू किया और बंगाल प्रांतीय कांग्रेस कमेटी के प्रचार का कार्यभार संभाला। वर्ष 1923 में बोस को भारतीय युवा कांग्रेस का अध्यक्ष और बंगाल राज्य कांग्रेस का सचिव भी चुना गया। वह चितरंजन दास द्वारा स्थापित समाचार पत्र ‘फॉरवर्ड’ के संपादक भी थे। जब दास 1924 में कलकत्ता के मेयर चुने गए तो बोस ने उनके लिए कलकत्ता नगर निगम के सीईओ के रूप में काम किया।
इसके बाद बोस को ब्रितानी हुकूमत द्वारा बर्मा (म्यांमार) निर्वासित कर दिया गया क्योंकि उन पर गुप्त क्रांतिकारी आंदोलनों से संबंध होने का संदेह था।
1927 में जब वे जेल से रिहा हुए, तब तक चित्तरंजन दस की मृत्यु हो चुकी थी। बोस को बंगाल कांग्रेस का अध्यक्ष चुना गया। इसके तुरंत बाद वह और जवाहरलाल नेहरू भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के दो महासचिव बने।
बोस के ऊपर लिखे विभिन्न लेखों के अनुसार, अपने सार्वजनिक जीवन में सुभाष को कुल 11 बार कारावास हुआ। हिंसक आन्दोलनों में उनकी संदिग्ध भूमिका के लिए कई बार रिहा किया गया और फिर दोबारा गिरफ्तार किया गया। अंततः उन्हें खराब स्वास्थ्य के कारण रिहा कर दिया गया और इलाज के लिए यूरोप जाने की अनुमति दे दी गई।
यूरोप में बीमार रहते हुए ही, उन्होंने द इंडियन स्ट्रगल, 1920-1934 लिखा और यूरोपीय नेताओं के सामने भारत का पक्ष रखा। यूरोप में बोस ने एमिली शेंकल ( Emilie Schenkl) से विवाह किया। वहां उनकी एक संतान भी हुई। कन्या का नाम रखा गया अनिता बोस (Anita Bose)।
जब सुभाष 1936 में यूरोप से लौटे, फिर से हिरासत में ले लिए गए और एक साल बाद रिहा कर दिए गए। वर्ष 1941 में बोस ब्रिटिश निगरानी में थे, लेकिन वे भेष बदलकर अफगानिस्तान के रास्ते भाग निकले। कांग्रेस के प्रयासों से पहले से कहीं ज्यादा असंतुष्ट होकर, उन्होंने अंग्रेजों को भारत से बाहर निकालने में मदद करने के लिए धुरी शक्तियों (Axis Powers) से समर्थन लेने के लिए यूरोप का रुख किया।
नाज़ी जर्मनी में बोस ने एडॉल्फ हिटलर से मुलाकात की और बर्लिन में फ्री इंडिया सेंटर की स्थापना की, जहाँ से उन्होंने स्वतंत्रता संदेशों को प्रसारित करने में एक वर्ष बिताया। जर्मनी ने बोस को एक छोटी सेना, फ्री इंडिया लीजन स्थापित करने में भी मदद की। 1943 में बोस अपनी पत्नी और बेटी को छोड़कर जापान चले गए जहाँ उन्हें भारतीय संघर्ष के प्रति काफी सहानुभूति मिली। उन्होंने सिंगापुर में आज़ाद हिंद, स्वतंत्र भारत की अंतरिम सरकार की स्थापना की। जापान ने 1943 में इंडियन नेशनल आर्मी (आईएनए/INA) को पुनर्जीवित करने में बोस का समर्थन किया और लगभग 40,000 सैनिकों की भर्ती की गई। किन्तु अमेरिका द्वारा जापान पर परमाणु बम गिराने के कारण जापान ने आत्मसमर्पण कर दिया। 15 अगस्त, 1945 को बोस ने सिंगापुर से एक रेडियो प्रसारण के दौरान आईएनए के अंत की घोषणा की।
युद्ध के बाद, बोस की गतिविधियाँ और अंतिम भाग्य रहस्य में डूबा हुआ है। ऐसा माना जाता है कि 18 अगस्त, 1945 को ताइवान में एक विमान दुर्घटना में उनकी मृत्यु हो गई थी। हालांकि कुछ लोग इस विमान दुर्घटना में साज़िश अथवा षड़यंत्र की ओर भी इशारा करते हैं। एक राष्ट्रवादी और स्वतंत्रता सेनानी के रूप में बोस की विरासत भारत के इतिहास में विद्यमान है, और सुभाष देश के स्वतंत्रता संग्राम में एक सम्मानित व्यक्ति बने हुए हैं। इस लेख के माध्यम से हम सुभाष चंद्र बोसे को अल्ट्रान्यूज़ की ओर से श्रद्धा-सुमन अर्पित करतें हैं।
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